Munshi Premchand Hindi stories. In this story post by Munshi Premchand. I have brought Premchand's stories in Hindi for you guys. And in this post, I will tell you about Munshi Premchand. And I will share some of their stories with you. Which is sacrifice, about yourself? Adi stories will be mentioned in this post. I hope you enjoy this post. And will definitely share with their friends.
Munshi Premchand Hindi stories
We will talk about this article.- Premchand
- Premchand ki Balidan Kahani
- Munshi Premchand Ne Apne bare men Kaha ha
Premchand
मुक्ति-संघर्ष के महान् योद्धा कथाकार प्रेमचन्द का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी से छ: मील दूर लमही ग्राम में हुआ था और मृत्यु 1936 में वाराणसी में हुई । प्रेमचन्द ने निम्नमध्यवर्गीय जीवन के अभावों, संकटों और परेशानियों से निरन्तर जूझते हुए अपने मानवीय एवं सृजनात्मक व्यक्तित्व का निर्माण किया और अपने देश और दुनिया के मनुष्यों की मुक्ति के लिए अपना तन-मन-धन सबकुछ होम कर दिया ।अपने जीवन-मूल्यों की रक्षा के लिए जीवरभर संघर्ष करनेवाले इस सर्वकालिक अमर रचनाकार ने अपने उपन्यासों और कहानियों के जरिये एक सुखी-समृद्ध मानवीय विश्व-समाज के सपनों को साकार करने के लिए अपने जीवन और साहित्य दोनों में लगातार एक योद्धा की भूमिका में गुज़र-बसर किया,
जिसकी उपलब्धि के रूप में निर्मला, सेवा सदन, गबन, रंगभूमि, कर्मभूमि और गोदान तथा मंगलसूत्र जैसे श्रेष्ठ उपन्यास प्रेमचंद ने एक कहानीकार के रूप में लगभग 300 कहानियाँ लिखीं, जिनमें जीवन के हर क्षेत्र, हर वर्ग के पात्रों की जीवन-स्थितियों का अत्यन्त मार्मिक चित्रण है ।
Munshi Premchand Hindi stories Balidan
प्रेमचंद स्वाधीनता आन्दोलन काल के एक श्रेष्ठ कहानीकार थे। उन्होंने अपने कथा साहित्य के द्वारा इस काल की ज्वलंत समस्याओं पर मात्र प्रकाश ही नहीं डाला है, बल्कि उसके निदान के लिए मार्ग भी प्रशस्त किया है। प्रेमचंद की दृष्टि समाज के सभी वर्गों पर गई है। 'बलिदान' कहानी में लेखक ने ग्रामीण परिवेश में जीने वाले किसानों की विभिन्न समस्याओं पर प्रकाश डाला है। हरखू एक किसान से मजदूर बन जाता है। उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा में परिवर्तन होता है। एक किसान से मजदूर बनने की प्रक्रिया कितनी दुःखद होती है, इसपर तो लेखक ने प्रकाश डाला ही है, उसके मुख्य कारणों पर भी प्रकाश डाला है।एक सम्पन्न किसान से मजदूर बन जाने की परिणति "बलिदान", कहानी में अत्यन्त ही त्रासद है। 'बलिदान' कहानी में बेतहाश हरखू का आत्म बलिदान अत्यन्त ही मार्मिक एवं यथार्थ लगता है। बलिदान कहानी वर्णनात्मक ढंग से कही गई है। सामाजिक यथार्थ को स्पष्ट करते हुए लेखक कहता है कि मनुष्य की आर्थिक अवस्था का प्रभाव उसके नामकरण पर परिलक्षित होता है। कहानी का पात्र हरखू कभी हरशचंद्र कुरमी के नाम से लोगों के बीच प्रतिष्ठा पाता था। लेकिन समय चक्र के दल दल में फंसकर वह विपन्न बनकर लोगों के बीच मात्र हरखू बनकर रह जाता है।
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उसकी विपन्नता का मुख्य कारण विदेशी शक्कर का व्यवसाय था, बदकिस्मत हरखू का निजी कुटीर उद्योग समाप्त हो जाता है। अपनी निर्धनता में भी वह अपना पुराना संस्कार छोड़ नहीं पाता। काल की छाया उसके संस्कार को धुमिल नहीं कर सकी। गाँव के लोग अभी भी उसका सम्मान करते हैं। कोई उसके सामने उसका विरोध नहीं करता। प्रत्येक वर्ष हरखू मलेरिया से पीड़ित होता था। लेकिन इस वर्ष उसकी बीमारी मानो मौत का परवान लेकर आई है। मंगल सिंह और कालिका सिंह औपचारिकता निर्वाह के लिए उसके पास आते हैं, दवा लाने की बातें करते हैं पर लाते नहीं।हरखू का पुत्र गिरधारी कभी नीम के सींके पिलाता, कभी गुर्च का सत, कभी गदपुखा की जड़ परन्तु इन औषधियों से कोई लाभ नहीं होता था। उसकी दशा दिनों-दिन बिगड़ती गई। यहाँ तक कि पाँच महीने कष्ट भोगने के बाद उसकी मौत हो गई। गिरधारी ने उसके श्राद्ध कर्म में अपना हैसियत से अधिक खर्च किया। आस-पास के तमाम लोगों को आमंत्रित किया। जात-बिरादरी के लोग काफी प्रसन्न हुए। इस तरह काफी व्यय करने के बाद गिरधारी अपने पितृ ऋण से मुक्त हो गया। - हरखू के खेत काफी जर्जर थे। वर्ष में तीन-तीन फसलें अच्छी तरह हो जाती थी।
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सिंचाई, मेड़-बाँध, सतह सभी दृष्टिकोण से उसके खेत ठीक ठाक थे। हरखू के मरते ही उसके खेतों पर आक्रमण होने लगे। ओंकार नाथ के यहाँ जाकर हरखू के खेतों के लिए साल भर का अग्रिम लगान देने को कई लोग तैयार थे। लेकिन ओंकारनाथ सभी को टाल रहे थे। उनकी दृष्टि में हरखू का उन खेतों पर अधिक अधिकार था। एक रोज जमींदार साहब ने गिराधारी को बुलवाया और पूछा-खेतों के बारे में क्या कहते हो। गिरधारी को उन्हीं खेतों का भरोसा था, ऐसा उसने कहा। ओंकारनाथ ने गिराधारी से कहा- हरखू ने उन्हें बीस साल तक जोता। उसपर तुम्हारा हक है, लेकिन तुम देखते हो अब जमीन की दर कितनी बढ़ गई है। तुम आठ रूपये बीघे पर जोतते थे मुझे 10 रू. मिल रहे हैं। और नजाराने के सौ रूपये अलग।तुम्हारे साथ रियायत करके लगान वही रखता हूँ, पर नजराने के रूपये देने पड़ेंगे। लेकिन गिराधारी विवश था। उसके पास तो खाने का भी ठिकाना नहीं था। जो कुछ जमा पूंजी थी हरखू के श्राद्ध कर्म में लग गयी थी। 100 रूपये का प्रबन्ध करना उसके काबू के बाहर था। दोनों बैल बेच देने से खेती कैसे होगी। चार पाँच पेड़ है उसकी बिक्री से मुश्किल से 20 रू. से 30 रू. मिलेगा। सुभागी के गहने पहले ही बिक चुके हैं। खेतों के लिए गिरधारी को विशेष चिन्ता हो रही थी। उसके नाम उसकी जीभ पर उसी तरह आते थे जिस तरह अपने तीनों बच्चों के नाम। मानो वे खेत सजीव हों। उसके जीवन की सारी आशाएं, सारी इच्छाएं, सारे मनसूबे, सारे हवाईकिले इन्हीं खेतों पर निर्भर थे।
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आठवें दिन गिरधारी को मालूम हुआ कि कालिका दीन ने 100 रू. नजाराने देकर 10 रूपये बीघे पर खेत ले लिये। उसने एक ठंढी साँस ली। कुछ क्षण बाद दादा का नाम लेकर रोने लगा। उस दिन उसके घर चूल्हा नहीं जला, ऐसा लगा जैसे हरखू, आज ही मरा है। गिरधारी के ऊपर मानों विपदाओं के पहाड़ टूट पड़े, वह सोचने लगा "अब मेरा क्या हाल होगा? अब यह जीवन कैसे कटेगा? ये लड़के किसके द्वार पर जाएंगे? मजदूरी का विचार करते ही उसका हृदय व्याकुल हो जाता। वह अब तक एक गृहस्थ था, उसकी गणना गाँव के भले आदमियों में थी, गांव के मामले में बोलने का अधिकार था।उसके घर धन न था, पर मान था। अब अपने पेट के लिए उसे दूसरों की गुलामी करनी पड़ेगी। अब खेत कहाँ? बधार कहाँ? यह सब सोंचते-सोचते गिरधारी की आँखों में आँसू की झड़ी लग जाती थी। वह यह नहीं समझता था, उसकी इस दयनीय अवस्था का कारण हरखू के श्राद्ध के पाखण्डपूर्ण खर्च करना ही था। उनका मन तो संस्कारों के मलवे के नीचे दबा था। अपनी हीनावस्था के लिए उसे थोड़ा भी पछतावा नहीं था। उसका तो सोंचना था "मेरे भाग्य में जो लिखा है, वह होगा, पर दादा के ऋण से तो उऋण हो गया।" तीन चार मास किसी तरह व्यतीत हो गये।
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असाढ़ मास के आते ही आकाश घटाओं से भर गया वर्षा होने लगी, कृषकों की जिन्दगी गुदगुदाने लगी। लेकिन गिराधारी का मन बैठने लगा। वह कभी घर के भीतर जाता, कभी बाहर आता, हल को निकाल-निकाल कर देखता। लेकिन अपनी स्थिति का ख्याल आते ही वह संभल जाता। एक दिन मंगल सिंह गिरधारी के निकट आये और इधर-उधर की बातें करके बोले बैलों को बाँध कर कब तक खिलाओगे? बेच क्यों नहीं देते। मंगल सिंह चालबाज. एवं कार्य कुशल व्यक्ति था। इसी कुशलता के बल पर उसने गिरधारी के बैलों की कीमतं 80 रूपये की जगह 60 में तय कर ली।दूसरे दिन गिरधारी के बैल बिक गये। बैल के बिकते ही, गिरधारी की मनोदशा बदल गयी, वह खूब फूट-फूट कर रोया। सुभागी भी दलान में रो रही थी। रात को गिरधारी ने कुछ नहीं खाया। चारपाई पर पड़ा रहा। प्रातः सुभागी देखती है कि गिरधारी की चारपाई खाली पड़ी है। जब दो-तीन घड़ी दिन चढ़ आया और वह नहीं लौटा तो उसने रोना-धोना शुरू किया। गांव के लोग जमा होने लगे, चारों ओर खोज होने लगी, पर गिरधारी का कुछ भी पता नहीं लगा।
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सांझ के समय जब सुभागी गिराधारी के सिरहाने चिराग रखने गयी तो उसे कुछ आहट मालूम पड़ी। वह दौड़कर बाहर आई, उसे देखा आभासित हुआ कि गिरधारी बैलों के नाद के पास सिर झुकाये खड़ा है। दूसरे दिन कालिकादीन हल लेकर गिराधारी के खेत पर पहुंचे। अभी कुछ अंधेरा ही था, उसे ऐसा लगा कि गिराधारी खेतों के बीच खड़ा है। भयाक्रांत होकर वे हल बैलों को छोड़कर भागे।गिरधारी के गायब हुए दो माह बीत चुके हैं। उसका बड़ा लड़का अब ईंट भट्ठी में 20 रू. माह पर नौकरी करता है। सुभागी अब परारू गाँव से आये हुए कुत्ते की भाँति दुबकती फिरती है। उसकी सारी सामाजिक मर्यादा धूल में मिल चुकी है। कालिकादीन ने गिरधारी के खेतों से इस्तीफा दे दिया है। उसे ऐसा लगता है कि गिराधारी अभी तक अपने खेतों के चारों ओर चक्कर काटता रहता है।
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कभी-कभी रात्रि में रोने की आवाज भी आती है। वह किसी से बोलता नहीं, किसी को छेड़ता नहीं। अपने खेतों को देखकर उसे संतोष होता है। दिया जलाने के बाद उधर का रास्ता बन्द हो जाता है। लाला ओंकार नाथ के लाख प्रयत्नों के बाद भी कोई उन खेतों को जोतने का नाम नहीं लेता। 'बलिदान' कहानी का शीर्षक अत्यंत ही सार्थक एवं प्रभावशाली है। यह अनुभूतिपरक, घटना सूचक एवं कथावस्तु को सुस्पष्ट करने में पूर्णतः समर्थ है। कहानी का प्रतिपाद्य विषय बलिदान शब्द से सुस्पष्ट हो जाता है।चरित्र चित्रण की दृष्टि से यह कहानी काफी सफल लगता है। कहानी के पात्र ही उसकी कथावस्तु में निबद्ध घटनाचक्र के नियामक होते हैं। प्रस्तुत कहानी के पात्र हरखू एवं गिरधारी का चरित्र काफी कारूणिक एवं ग्रामीण परिवेश को उजागर करने वाले हैं। कथोपकथन में संक्षिप्तता, स्वाभाविकता एवं सम्प्राणता है। भाषा सामान्य एवं बोलचाल की है। ग्रामीण पात्रों एवं परिस्थितियों को उजगार करने में 'बलिदान' कहानी की भाषा काफी सरल
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