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Sagun Kavya Dhara Kya Hai | Virtuous poetry | सगुण काव्य-धारा

Sagun Kavya Dhara Kya Hai | Virtuous poetry | सगुण काव्य-धारा. Saguna means virtue, here virtue means form. We have already known that devotion, believing in the form, shape, incarnation of God, is called Saguna Bhakti. It is clear that in the Sagun Kavadhara, the pastimes of God in the form of God have been sung. It says - Bhakti Dravid Uppji, Laya Ramanand.

Sagun Kavya Dhara Kya Hai | Virtuous poetry | सगुण काव्य-धारा

Sagun Kavya Dhara Kya Hai | Virtuous poetry | सगुण काव्य-धारा

Ans. सगुण का अर्थ है गुण सहित, यहाँ पर गुण का अर्थ है- रूप। यह हम जान ही चुके हैं कि ईश्वर के रूप, आकार,अवतार में विश्वास करने वाली भक्ति सगुण भक्ति कहलाती है। स्पष्ट है कि सगुण काव्यधारा में ईश्वर के साकार स्वरूप की लीलाओं का गायन हुआ है। कहते हैं - भक्ति द्राविड़ ऊपजी, लाये रामानंद।' 

अर्थात् सगुण भक्तिधारा या वैष्णव (विष्णु के अवतारों के प्रति) भक्ति दक्षिण भारत में प्रवाहित हुई। उत्तर भारत में इसे रामानंद लेकर आए। राम को विष्णु का अवतार मानकर उनकी उपासना का प्रारंभ किया। इसी प्रकार वल्लभाचार्य ने कृष्ण को विष्णु का अवतार मानकर उनकी उपासना का प्रारंभ किया। इस तरह से रामभक्ति

और कृष्ण भक्ति की दो धाराएँ चल निकलीं। रामभक्ति धारा के तुलसीदास तथा कृष्णभक्ति धारा के सूरदास प्रमुख कवि हैं। सगुण भक्तिधारा के कवियों ने भक्ति की नौ विधियाँ (नवधा भक्ति) बताई। भक्ति के ये नौ विधि या प्रकार हैं- 
1. श्रवण (ईश्वर के गुणों का सुनना), 
2. कीर्तन (स्वयं ईश्वर का कीर्तन करना), 
3. स्मरण (ईश्वर को याद करना), 
4. पाद-सेवन (ईश्वर के चरणों की सेवा करना), 
5. अर्चन (प्रभु की सेवा शुश्रुषा करना), 
6. वंदन (पूजा करना), 
7. सख्य (सखा भाव से निवेदन करना), 
8. दास्य (ईश्वर को स्वामी और स्वयं को उनका दास मानकर उपासना करना), 
9. आत्मनिवेदन (अपनी बात विनयपूर्वक कहना)। 
सगुण काव्य-धारा के कवियों की रचनाओं में इन सब प्रकार की भक्ति का वर्णन हुआ है। सूर की रचनाओं में मुख्यतः सख्य भाव है हालांकि वे वल्लभाचार्य से मुलाकात होने से पहले आत्मनिवेदन और दास्य भाव की रचनाएँ करते थे। उन्होंने 'श्रीमद्भागवत' के आधार पर कृष्ण-लीला का गायन किया है। तुलसी में दास्य भाव की प्रधानता है। रामकथा का आधार-ग्रंथ 'वाल्मीकि रामायण' है। सूर और तुलसी ने अपनी दृष्टि, नई शैली तथा रसों के विधान के द्वारा अपने काव्य को विशिष्ट बना दिया।

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