Nirgun Kavya Dhara | Poetic stream | निर्गुण काव्य-धारा. Poets of this poetic stream have considered God devoid of form, shape, etc. (free + quality; quality = form). They do not believe in the incarnation of God. They refute avatars on the basis of logic (knowledge) and consider God to be a matter of inner feeling. Some Nirgun worshiping poets attempted to explain the formless form of God through love stories. In this way, there are two sub-streams of Nirgun poetry.
Nirgun Kavya Dhara | Poetic stream | निर्गुण काव्य-धारा
Ans. इस काव्य-धारा के कवियों ने ईश्वर को रूप, आकार आदि से रहित (नि:+गुण; गुण = रूप) माना है। ईश्वर के अवतार में ये विश्वास नहीं करते। वे तर्क (ज्ञान) के आधार पर अवतारवाद का खंडन करते हैं तथा ईश्वर को आंतरिक अनुभूति का विषय मानते हैं। कुछ निर्गुण उपासक कवियों ने प्रेमकथाओं के माध्यम से ईश्वर के निराकार रूप को
समझाने का प्रयास किया। इस तरह निर्गुण काव्य-धारा की दो उप-धाराएँ हो गई। पहली ज्ञानमार्गी धारा, दूसरी प्रेममार्गी धारा। ज्ञानमार्गी धारा को मुख्यतः संतों ने पुष्ट किया। इसलिए इसे संत-काव्य या संत-साहित्य भी कहते हैं। प्रेममार्गी धारा के कवि सूफी मत (इस्लाम और भारतीय वेदांत दर्शन का मिला-जुला रूप) मानते थे।
इसीलिए प्रेममार्गी धारा के काव्य-साहित्य को सूफी काव्य या प्रेमाख्यानक (प्रेम+आख्यान; आख्यान अर्थात् कथा) काव्य भी कहते हैं। निर्गुण संत-काव्य के प्रवर्तक कबीरदास (1399-1518 ई०) माने जाते हैं। कबीर के संबंध में अनेक परस्पर विरोधी धारणाएँ प्रचलित हैं। इतना निश्चित है कि उन्होंने औपचारिक शिक्षा नहीं प्राप्त की थी। वे रामानंद के शिष्य थे। उन्होंने हिंदू और मुसलमान दोनों में व्याप्त पाखंड की कड़े शब्दों में निंदा की। अन्य धार्मिक तथा सामाजिक
संस्कारों की तरह अभिव्यक्ति की भाषा और शैली भी उन्होंने अपने पूर्ववर्ती सिद्धों और नाथपंथी जोगियों से प्राप्त की तथा उसे अपने समय और समाज के अनुकूल निखारा। उनकी गणना हिंदी के शीर्ष कवियों में की जाती है। अनेक भाषाओं के मिले-जुले रूप के कारण उनकी भाषा नितांत भिन्न प्रकार की है और संभवतः इसी कारण 'सधुक्कड़ी' है।
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