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आपके लिए लाया हूँ मैं। तुलसी पूजा, शालिग्राम का विवाह, देव प्रबोधिनी एकादशी विशेज, स्टेटस, शायरी, शुभकामनाये आदि बहुत ही सुन्दर से ग्रीटिंग कार्ड, वॉलपेपर, फोटो, इमेज, जिसे आप अपने लोगों के साथ सोशल मीडिया प्लेफॉर्म पर शेयर करने के लिए यूज़ कर सकते हैं।
Tulsi Puja Tulsi Shaligram Vivah Dev Uthani Ekadashi
नमस्कार दोस्तों Status Clinic में आपका स्वागत है आज हम बात करुंगी बहुत ही प्रसिद्ध पौराणिक कहानी के बारे में जिसका शीर्षक है होता है तुलसी और शालिग्राम का विवाह दोस्तों आइए हम आपको बताते हैं यह प्रसिद्ध पौराणिक कहानी दोस्तों धार्मिक मान्यता के अनुसार Dev Uthani Ekadashi के दिन भगवान विष्णु नींद से जाते हैं
इसी दिन शुभ कार्यों की शुरुआत भी होती है उठनी एकादशी से जुड़ी कई परंपराएं हैं ऐसी ही एक परंपरा है तुलसी शालिगराम विवाह की शालिग्राम को भ
गवान विष्णु का ही स्वरूप माना जाता है
शालिग्राम का विवाह क्यों होता है इसकी शिव पुराण की एक कथा है उसको शिव महापुराण के अनुसार पुरातन समय में व्यक्तियों का राजा दम था
वह विष्णु भक्त था बहुत समय तक जब उसके यहां पुत्र नहीं हुआ तो उसने दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य गुरु बनाकर उनसे श्री कृष्ण मंत्र प्राप्त किया और उस कर मैं जाकर घोर तप किया उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसे पुत्र होने का वरदान दिया भगवान विष्णु के वरदान स्वरुप के यहां पुत्र का जन्म हुआ उस तो वास्तव में वह
Tulsi Puja Tulsi Shaligram Vivah Dev Uthani Ekadashi Ke Bare Men
श्री कृष्ण के पार्षदों का अग्नि सुदामा नामक था जिसे राधा जी ने असुर योनि में जन्म लेने का श्राप दिया था इस कारण इसका नाम शंख चूर रखा गया जब शंख चूर बढ़ा हुआ उसने पुष्कर में जाकर ब्रह्मा जी को प्रसन करने के लिए घोर तपस्या की शंख चूर की तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी प्रकट हुए और वर मांगने के लिए कहा तब शंख
चूर्ण वरदान मांगा कि मैं देवताओं के लिए अजय हो जाऊं ब्रह्मा जी ने उसे वरदान दे दिया और कहा कि बकरी बन जाओ वहां धर्म ध्वज की पुत्री तपस्या कर रही है उसके साथ विवाह कर लो ब्रह्मा जी के कहने पर शंख चूर्ण गया वहां तपस्या कर रही तू उसी को देखकर आकर्षित हो गया भगवान ब्रह्मा वह स्वयं प्रकट हुए उन्होंने शंख चूर को
गांधर्व विधि से तुलसी से विवाह करने के लिए ऐसा ही किया इस प्रकार शंख पूर्वक Tulshi विहार करने लगे बहुत ही भीड़ था उसे वरदान था कि देवता भी उसे हरा नहीं पाएंगे उसमें अपने बल से देवताओं असुरो दानों राक्षसों गंधर्व नागो किन्नरों मनुष्य तथा त्रिलोकी के सभी प्राणियों पर विजय प्राप्त कर ली उसके राज्य में तभी सुखी थे वह सदैव
Tulsi Shaligram Vivah Krishna Ke Bere men
भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन रहता था स्वर्ग के हाथ से निकल जाने पर देवता ब्रह्मा जी के पास गए और ब्रह्माजी उन्हें लेकर भगवान विष्णु के पास गए देवताओं की बात सुनकर भगवान विष्णु ने बोला मृत्यु भगवान शिव के त्रिशूल से निर्धारित है यह जानकर सभी देवता भगवान शिव के पास आए देवताओं की बात सुनकर भगवान
शिव ने चित्ररथ नामक गण को अपना दूत बनाकर शंख चूर के पास भेजा चित्र रत्नचुर को समझाया कि वह देवताओं को उनका राज्य लौटा दे लेकिन तूने कहा कि महादेव के साथ बिना मैं देवताओं को राज्य भगवान शिव को जब यह बात पता चली तो वे युद्ध के लिए अपनी सेना लेकर निकल पड़े युद्ध के लिए तैयार होकर आ गया
देखते ही देखते देवताओं में घमासान युद्ध का वरदान के कारण को देवता नहीं पा रहे थे और देवताओं का युद्ध सैकड़ों साल तक चलता रहा अंत में भगवान शिव ने शंख चूर्ण का वध करने के लिए जैसे ही अपना त्रिशूल उठाया तभी आकाशवाणी हुई कि जब तक शंख चूर के हाथ में श्रीहरि का कवच है और उसकी पत्नी का अतीत है अब तक
Dev Uthani Ekadashi Bhagwan Vishnu
इस का वध करना संभव नहीं होगा आकाशवाणी सुनकर भगवान विष्णु वृद्ध ब्राह्मण का रूप धारण कर शंख चूर के पास गए और उसे श्रीहरि कवच दान में मांग लिया शंख चूर्ण व कवच बिना किसी संकोच दान कर दिया इसके बाद भगवान विष्णु का रूप बनाकर Tulsi के पास गए वहां जाकर शंखचूड़ रूपी भगवान विष्णु ने तुलसी के महल
के द्वार पर जाकर अपना विजई होने की सूचना दी उनका तुलसी बहुत प्रसन्न हुई और पति के रुप में आए भगवान का पूजन किया और रमन किया तुलसी का सतीत्व भंग होते ही भगवान शिव ने युद्ध में अपने त्रिशूल का वध कर दिया कुछ समय बाद तुलसी को ज्ञात हुआ कि नहीं है भगवान अपने मूल स्वरूप अपने साथ छल हुआ जानकर
Shaligram Vivah Dev Uthani Ekadashi Sankhchur
शंखचूड़ की पत्नी होने लगी उसने कहा आज आपने चल पूर्वक मेरा धर्म नष्ट किया है और मेरे स्वामी को मार डाला आप अवश्य ही पाषाण भेजे हैं अतः आप मेरे हिसाब से अब पाषाण होकर पृथ्वी पर रहेंगे तब भगवान विष्णु ने कहा देवी तुम मेरे लिए भारतवर्ष में रहकर बहुत दिनों तक तपस्या कर चुकी हो अब तुम इस शरीर का त्याग करके
दिव्य देह धारण करके मेरे साथ आनंद से रहो तुम्हारा यह शरीर नदी रूप में बदलकर घंटे की नामक नदी के रूप में प्रसिद्ध होगा उसको मैसेज तुलसी का वृक्ष बन जाओगी और सदा मेरे साथ रहोगी तुम्हारे सत्य करने के लिए मैं पाषाण यानी शालिग्राम बन कर रहूंगा गंडकी नदी के तट पर मेरा वास रहेगा नदी में रहने वाले करोड़ों कीड़े अपने
तीखे दांतों से काट काट कर उस पाषाण पर मेरे का चिन्ह बनाएंगे धर्म प्रेमी तुलसी के पौधे वह शालिग्राम शिला का विवाह कर पुण्य अर्जन करेंगे दोस्तों नेपाल की नदी किस नदी में ही मिलते हैं शालिग्राम के पत्थर परंपरा के अनुसार देव प्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान शालिग्राम और तुलसी का विवाह संपन्न कर मांगलिक कार्यों का
प्रारंभ किया जाता है मान्यता है कि Tulsi Saligram Vivah करवाने से मनुष्य को अतुल्य की प्राप्ति होती है तो दोस्तों यदि पौराणिक कथा क्यों होता है और शालिग्राम का विवाह दोस्तों आपको हमारी यह कथा कैसी लगी कमेंट करके अपने सुझाव हमारे सामने प्रस्तुत करें
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