Skip to main content

Dard Divani Meera दर्द दीवानी मीरा

Dard Divani Meera दर्द दीवानी मीरा. Ans. In the medieval poetess of Krishna-devotee Meera, his disobedience is his reality, then Krishna-union is his dream. The representative line of Meera's reality of life is - "Ansuvan water cinch-Cinchi, prem-Belli sow." That is, Meera's love for Krishna is a bell (lata, Birwa) which she has watered with tears. Murat-tempted Meera has expressed the anguish of Varaha in her positions.

Dard devani meera दर्द दीवानी मीरा

Dard Divani Meera दर्द दीवानी मीरा

Ans. कृष्ण-भक्त की मध्यकालीन कवयित्री मीरा के यहाँ विरह-वेदना उनका यथार्थ है तो कृष्ण-मिलन उनका स्वप्न। मीरा के जीवन के यथार्थ की प्रतिनिधि पंक्ति है-“अँसुवन जल सींचि-सींचि, प्रेम-बेलि बोई।" अर्थात् कृष्ण के प्रति मीरा का प्रेम एक बेल (लता, बिरवा) है जिसे उन्होंने आँसुओं के जल से सींचा है। सूरत-लुभानी मूरत-लुभानी

मीरा ने विरह की वेदना को अभिव्यक्त किया है अपने पदों में। बिरहिणी की नींद उड़ जाना तथा प्रियतम के बिना किसी भाँति चैन न पड़ना- ऐसे भाव को मीरा ने अत्यंत मार्मिकता के साथ प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया है। यहाँ विरह-वेदना की आंतरिक अनुभूति को अत्यंत मार्मिक ढंग से व्यक्त किया गया है। प्रेम की पीड़ा आंतरिक पीड़ा है, इसे वही समझता है जिस पर गुजरती है-यह भाव मीरा की कविता में खूब मिलता है- “हेरी मैं तो दरद दिवाणी

मेरो दरद न जाणै कोई। घायल की गति घायल जाणै, कि जिण लाई होई।। " दर्द-दीवनी मीरा अपनी अनुभूति के विषय में कहती हैं कि इसे लोग जान नहीं पाते तो वे इसकी पहचान ही बता रही है। वे कहती हैं कि मेरे 'दरद' को वह जान लेगा जो खुद मेरी तरह दीवाना होगा। घायल की पीड़ा को-अनुभूति को घायल जान लेगा। मीरा सिर से पैर तक सरल है और तरल, भाव से लेकर भाषा तक सरल है और तरल। और यह 'दरद' तभी मिटेगा जब "वैद सांवलिया होया" ।

Comments

Popular posts from this blog

Sagun Kavya Dhara Kya Hai | Virtuous poetry | सगुण काव्य-धारा

Sagun Kavya Dhara Kya Hai | Virtuous poetry | सगुण काव्य-धारा.  Saguna means virtue, here virtue means form. We have already known that devotion, believing in the form, shape, incarnation of God, is called Saguna Bhakti . It is clear that in the Sagun Kavadhara, the pastimes of God in the form of God have been sung. It says - Bhakti Dravid Uppji, Laya Ramanand. Sagun Kavya Dhara Kya Hai | Virtuous poetry | सगुण काव्य-धारा Ans. सगुण का अर्थ है गुण सहित, यहाँ पर गुण का अर्थ है- रूप। यह हम जान ही चुके हैं कि ईश्वर के रूप, आकार,अवतार में विश्वास करने वाली भक्ति सगुण भक्ति कहलाती है। स्पष्ट है कि सगुण काव्यधारा में ईश्वर के साकार स्वरूप की लीलाओं का गायन हुआ है। कहते हैं - भक्ति द्राविड़ ऊपजी, लाये रामानंद।'  अर्थात् सगुण भक्तिधारा या वैष्णव (विष्णु के अवतारों के प्रति) भक्ति दक्षिण भारत में प्रवाहित हुई। उत्तर भारत में इसे रामानंद लेकर आए। राम को विष्णु का अवतार मानकर उनकी उपासना का प्रारंभ किया। इसी प्रकार वल्लभाचार्य ने कृष्ण को विष्णु का अवतार मानकर उनकी उपासना का प्रारंभ किया। इ

विद्यापति का संक्षिप्त जीवन-वृत्त प्रस्तुत करते हुए उनके काव्यगत वैशिष्ट्य पर प्रकाश डालें। अथवा, विद्यापति का कवि-परिचय प्रस्तुत करें।

विद्यापति का संक्षिप्त जीवन-वृत्त प्रस्तुत करते हुए उनके काव्यगत वैशिष्ट्य पर प्रकाश डालें। अथवा, विद्यापति का कवि-परिचय प्रस्तुत करें। उपर्युक्त पद में कवि विद्यापति द्वारा वसंत को एक राजा के रूप में उसकी पूरी साज-सज्जा के साथ प्रस्तुत किया गया है अर्थात् वासंतिक परिवंश पूरी तरह से चित्रित हुआ है। अपने आराध्य माधव की तुलना करने के लिए कवि उपमानस्वरूप दुर्लभ श्रीखंड यानी चंदन, चन्द्रमा, माणिक और स्वर्णकदली को समानता में उपस्थित करता है किन्तु सारे ही उपमान उसे दोषयुक्त प्रतीत होते हैं, यथा-'चंदन' सुगंधि से युक्त होकर भी काष्ठ है 'चन्द्रमा' जगत को प्रकाशित करता हुआ भी एक पक्ष तक सीमित रहता है, माणिक' कीमती पत्थर होकर भी अन्ततः पत्थर है तथा स्वर्ण-कदली लज्जावश हीनभाव के वशीभूत होकर यथास्थान गड़ी रहती है ऐसे में कवि को दोषयुक्त उपमानों से अपने आराध्य की तुलना करना कहीं से भी उचित नहीं लगता है अत: माधव जैसे सज्जन से ही नेह जोड़ना कवि को उचित जान पड़ता है। इस दृष्टि से अग्रांकित पंक्तियाँ देखी जा सकती हैं विद्यापति का संक्षिप्त जीवन-वृत्त प्रस्तुत करते हुए उनके

सूरदास की भक्ति-भावना के स्वरूप की विवेचना कीजिए। अथवा, सूरदास की भक्ति-भावना की विशेषताओं पर प्रकाश डालिये।

सूरदास की भक्ति-भावना के स्वरूप की विवेचना कीजिए। अथवा, सूरदास की भक्ति-भावना की विशेषताओं पर प्रकाश डालिये।  उत्तर-'भक्ति शब्द की निर्मिति में 'भज् सेवायाम' धातु में 'क्तिन' प्रत्यय का योग मान्य है जिससे भगवान का सेवा-प्रकार का अर्थ-ग्रहण किया जाता है जिसके लिए आचार्य रामचंद्र शुक्ल श्रद्धा और प्रेम का योग अनिवार्य मानते हैं। ऐसा माना जाता है कि भक्ति को प्राप्त होकर समस्त लौकिक बन्धनों एवं भौतिक जीवन से ऊपर उठ जाता है जहाँ उसे अलौकिक आनन्द की अनुभूति होती है। भक्ति के लक्षण की ओर संकेत करते हुए भागवतंकार कहते हैं "स वै पुंसां परोधर्मो यतोभक्ति रमोक्षजे। अहेतुक्य प्रतिहताययाऽऽत्मा संप्तसीदति।।" उपर्युक्त श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण के प्रति व्यक्ति में उस भक्ति के उत्पन्न होने की अपेक्षा की गई है जिसकी निरन्तरता व्यक्ति को कामनाओं से ऊपर पहुँचाकर कृतकृत्य करती है। _ हिन्दी साहित्येतिहास में भक्तिकालीन कवि सूरदास कृष्णभक्त कवियों में सर्वाधिक लोकप्रिय और सर्वोच्च पद पर आसनस्थ अपनी युग-निरपेक्ष चिरन्तन काव्य-सर्जना की दृष्टि से अद्वितीय कवि हैं जिनके द्वारा प