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Pallavan kise kahate hain Pallavan ka mahatv पल्लवन किसे कहते हैं। पल्लवन का महत्व

Pallavan kise kahate hain Pallavan ka mahatv पल्लवन किसे कहते हैं। पल्लवन का महत्व. पल्लवन अर्थ और महत्व वसन्तु ऋतु में पत्तों के झरने के साथ डालियों में कोपल निकल आते हैं। ये कोपल वस्तुतः पल्लव होते हैं मगर छोटे और लिपटे हुए। दो चार दिनों में कोपल की परतें खुलती हैं और एक पूरा पत्ता हमारे सामने होता है। यही कोपल का पल्लवन या पत्ता बनना पल्लवन है।

Pallavan kise kahate hain Pallavan ka mahatv

मनुष्यों में जो श्रेष्ठ है और चिन्तनशील होते हैं उनकी बातें सूत्र रूप में व्यक्त होती हैं। उनके कथन में अर्थ की कई परतें लिपटी होती हैं। बँटी हुई रस्सी की तरह उनके विचार तन्तु आपस में चिपके होते हैं, श्लिष्ट होते हैं। इस तरह सूत्र रूप में, बँटी हुई रस्सी के रूप में प्राप्त कथन को खोलना पल्लवन है। विचारों के कोपल की परतों को विकसित कर स्पष्ट करना, उनका मर्म समझा देना पल्लवन कहलाता है।

अतः पल्लवन की परिभाषा देते हुए कहा जा सकता है कि सूत्र रूप में प्रस्तुत कथन को खोलकर उनके अभिप्राय या मर्म को स्पष्ट कर देना पल्लवन

Pallavan kise kahate hain Pallavan ka mahatv पल्लवन किसे कहते हैं। पल्लवन का महत्व 

कहलाता है। पल्लवन संक्षेप का विपरीतार्थक है। यह बन्द कली का पुष्प में विकास है। विस्तार या विकास पल्लवन की पहचान है। जो विकसित होकर अपना विस्तार पा चुका कथन का पल्लवन नहीं होता। अत: पल्लवन के लिए प्रस्तुत कथन की पहचान सूत्रात्मकता कोपल या कली या बँटी हुई रस्सी या सूत्र से पल्लवन के लिए दिये कथन की पहचान है और उस कथन के फैलाव या विस्तार से पल्लवन की पहचान होती है।

पल्लवन और व्याख्या में अन्तर का प्रश्न स्वभावत: उठता है। पल्लवन व्याख्या नहीं। व्याख्या में प्रसंग निर्देश की आवश्यकता होती है पल्लवन में नहीं। व्याख्या में दी गयी पंक्ति आलोचना तथा उसमें निहित सौन्दर्य के स्पष्टीकरण की आवश्यकता होती है। पल्लवन आलोचना और काल सौन्दर्य का निर्देश नहीं होता है। इसमें केवल निबद्ध विचार को स्पष्ट किया जाता है, 

अभिप्राय समझाया जाता है और अर्थ की परतों को खोलकर रखा जाता है। व्याय में अपनी बात स्पष्ट करने के लिए उदाहरण तथा उन रचनाकारों की समकोटिक पंक्तियाँ खी जा सकती हैं। लेकिन पल्लवन में ऐसा नहीं किया जाता। एक वाक्य में पल्लवन में दिये गये कथन की परिधि से बाहर जाना मना होता है जबकि व्याख्या में कथन के बाहर की बात कहकर भी स्पष्टीकरण किया जा सकता है।

Pallavan ka mahatv  पल्लवन का महत्व

मनीषी चिन्तक, विद्वान विचारक तथा सिद्ध साहित्यकार प्राय: अपनी बात सूत्र शैली में कह जाते हैं। उनकी स्थिति तुलसीदास के अनुसार 'अरथअमित अति आखर थोड़े'' होती है। उन्हें हम नावक के तीर की तरह भी कह सकते हैं जो

'देखन में छोटन लगै घव करै गंभीर।"


अपनी रचनागत इस विशिष्टता के कारण सूत्र शैली में कहे गये विचार भाव या कथन सामान्य जनों के लिए पूरी तरह बोधगम्य नहीं होते। उन कथनों को समझने में उन्हें असुविधा होती है। 

अत: वे चाहते हैं कि कोई समझदार व्यक्ति उस कथन का पूरा अभिप्राय खोलकर समझा दे। पल्लवन सूत्रात्मक कथनों को खोलकर समझाता है। उनके पूरे अर्थ और अभिप्राय को समझाता है। 

पल्लवन की आवश्यकता किसी न किसी स्तर पर हर व्यक्ति को होती है। ज्ञाता व्यक्तियों से पहले जानना और फिर दूसरों को समझाना यही ज्ञान परम्परा है। पल्लवन इसमें अपनी भूमिका निभाता है। अत: उसका महत्व स्वयं सिद्ध है।

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