Janaganana 2011 par Nibandh Likhiye || जनगणना 2011 पर निबंध लिखें || write essay on Census 2011. जगनणना 2011 2011 में हम भारतवासियों की संख्या 1.21 अरब हो गई। भारत की जनगणना में आंकड़ों से कुछ अच्छी सूचनाएं मिली हैं। मसलन साक्षरता दर काफी बढ़ी है।
2001 में जहां साक्षरता दर 64.83 प्रतिशत दर्ज की गई थी, इस जनगणना में यह बढ़कर 74.04 प्रतिशत हो गई है। अच्छी बात यह भी है कि साक्षरता दर महिलाओं में पुरूषों के मुकाबले ज्यादा बढ़ी है, यानी साक्षरता के मोर्चे पर पुरूष और महिलाओं का अंतर कम हुआ है। दूसरी अच्छी खबर यह है कि जनसंख्या में छह वर्ष तक के बच्चों की संख्या का अनुपात कम हुआ है।
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यह संख्या 2001 में 15.9 प्रतिशत थी अब 13.1 प्रतिशत है। इसकी सीधा-साधा अर्थ यह है कि आबादी कम करने के उपाय रंग ला रहे हैं, लेकिन खतरनाक तथ्य यह है कि लड़कियों की तादाद घटने की दर लड़कों की तादाद घटने की दर से ज्यादा है। लड़कियों की तादाद घटने की दर 3.80 है जबकि लड़कों की 2.48 है, यानी लड़कियां कम पैदा हो रही हैं या वे पैदा ही नहीं होने दी जा रही हैं। यह तथ्य स्त्री-पुरूष अनुपात में भी समझ में आता है।
यह अनुपात बिगड़ता ही जा रहा है और 2011 की जनगणना में 914:1000 का है, जो कि 1947 के बाद से सबसे कम है। हालांकि इस तथ्य से कुछ राहत महसूस की जा सकती है कि संतुलन बिगड़ने की दर कुछ कम हुई है, यानी महिला भ्रूण हत्या के खिलाफ जो भी कदम उठाए जा रहे हैं, वे कुछ हद तक कारगर जरूर है, लेकिन उतने नहीं, जितने होने चाहिए।
जनगणना 2011 पर निबंध लिखें
इस मोर्चे पर अब युद्धस्तर पर जुट जाने की जरूरत है, क्योंकि कई इलाकों में स्थिति खतरनाक हो गई है। ये भयानक रूप से गरीब पिछड़े इलाके नहीं हैं बल्कि हरियाणा और पंजाब के समृद्ध इलाके हैं। इस खतरे के बढ़ने की आशंका आबादी नियंत्रण की कोशिशों के तेज होने के साथ ज्यादा है, क्योंकि जो भी सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से पिछड़े और आर्थिक रूप से समृद्ध परिवार हैं, वे जब बच्चों की तादाद कम करेंगे,
तो उनकी मंशा यह होगी कि जो एक या दो बच्चे हों, वे लड़के हों। चीन में एक दंपत्ति के एक बच्चे का नियम लागू होने के बाद स्त्री-पुरूष अनुपात बेहद गड़बड़ हो गया, क्योंकि ज्यादातर दंपत्ति यह चाहने लगे कि उनकी एकमात्र संतान लड़का ही हो। यह समस्या मूलतः स्त्रियों की पढ़ाई, उनके लिए अच्छे सामाजिक माहौल और आजादी से जुड़ी है। जब तक लड़की को परिवार के लिए बोझ माना जाएगा, तब तक यह अनुपात ठीक नहीं होगा।
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हम भारत में आर्थिक क्षेत्र में जबरदस्त तेज तरक्की देख रहे हैं, लेकिन इसके साथ समाज सुधार की कोशिशें उतनी नहीं दिख रहीं इसका एक नतीजा यह है कि समाज के कई तबके आर्थिक रूप से संपन्न तो हुए हैं, लेकिन सामाजिक स्तर पर उनमें संकीर्णता और रूढ़िवादिता बनी हुई है, बल्कि ऐसे तबके अपनी संकीर्णता को बचा पाने में इसलिए कामयाब होते हैं,
क्योंकि उनके पास आर्थिक और सामाजिक ताकत है। इन समस्याओं से कानून एक हद तक ही निपटा जा सकता है, बड़ा बदलाव तो समाज में उदार नजरिये को स्थापित करने के लिए सामाजिक आंदोलनों से ही आ सकता है। धीरे-धीरे भारत की आबादी बढ़ने की रफ्तार कम हो रही है और लगभग
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30-35 साल बाद इसके स्थिर हो जाने का अनुमान है। अगर इसके साथ ही स्त्री-पुरूष अनुपात नहीं सुधरा, तो इसके भयावह सामाजिक परिणाम हो सकते हैं। सभी वर्गों को समाज का हित समझते हुए इस खतरे को टालना होगा। अब महिला साक्षरता में देश का बॉटम जिला नहीं रहा किसनगंज। 30 फीसदी के साथ
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