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Jaki Rahi Bhavna Jaisi. Prabhu Murat dekhi tin taisi. जाकी रही भावना जैसी। प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।

Jaki Rahi Bhavna Jaisi. Prabhu Murat dekhi tin taisi. जाकी रही भावना जैसी। प्रभु मूरत देखी तिन तैसी। यह लोकोक्ति गोस्वामी तुलसीदास रचित ग्रंथ रामचरित मानस की पंक्ति है। इसमें बताया गया है कि जिसकी जैसी भवाना थी उसने उसी रूप में भगवान श्रीराम को देखा। 

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Jaki Rahi Bhavna Jaisi. Prabhu Murat dekhi tin taisi. जाकी रही भावना जैसी। प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।

माता-पिता जैसी भावना रखनेवालों ने उन्हें बालक रूप में देखा, प्रेमिका की मनोदशा वाली युवतियों ने उन्हें पति या प्रेमी रूप में देखा, दुष्टों ने उन्हें शत्रु रूप में देखा आदि आदि।

इस उक्ति का अभिप्राय मनुष्य के मनोविज्ञान के एक शाश्वत तत्व की ओर संकेत करना है। मनुष्य जैसा होता है, दूसरे को भी उसी रूप में देखता है। जो व्यक्ति चोर होता है वह दूसरों को चोर समझता है। जो भ्रष्ट होता हैं। वह दूसरों को भ्रष्ट समझता है। 

इसी तरह जो सज्जन होते हैं, वे दूसरों को भला समझते हैं, भले ही वह व्यक्ति बुरा हो। इस तरह इस उक्ति से यह बात स्पष्ट होती है कि अपने दिल से जानिए पराये दिल का हाल।

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