kanth hriday ki kasauti hai, tapasya agni hai. कंठ हृदय की कसौटी है, तपस्या अग्नि है। इस उक्ति में दो बातें कही गयी हैं कि प्रथम यह निकंठ हृदय की कसौटी है। यहाँ कंठ से तात्पर्य वाणी से है। व्यक्ति लाख चतुर हो, गंभीर हो या कली हो, उसके हृदय की सच्चाई उसकी वाणी से व्यक्त हो जाती है। अर्थात् मन की बात भाषा के द्वारा व्यक्त हो जाती है।
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kanth hriday ki kasauti hai, tapasya agni hai. कंठ हृदय की कसौटी है, तपस्या अग्नि है।
दूसरे भाग में कहा गया है कि तपस्या अग्नि है। तपस्या से तात्पर्य किसी लक्ष्य के लिए की जाने वाली सतत साधना है। इस सतत साधना के द्वारा मनुष्य के मन में विकार तथा इतर इच्छाएँ जल जाती है, मर जाती हैं और व्यक्ति लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है।
यदि वह व्यक्ति अपने अवगुणों या विकारों से मुक्ति का प्रयास करता है तो तप से यह भी प्राप्त हो जाता है। इस तरह कहा जा सकता है कि तपस्या से विकार नष्ट होते हैं और लक्ष्य प्राप्त होता है। तपस्या सोना को शुद्ध करने की प्रक्रिया है। अतः तपस्या अग्नि है।" "
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