Khet khaye gadha mar khaye jolha खेत खाये गदहा मार खाये जोलहा। इस उक्ति का अभिप्राय है अपराध किसी का और दण्ड किसी को। ऐसा लगता है कि किसी व्यक्ति का गदहा किसी का खेत चर गया होगा।
Khet-khaye-gadha-mar-khaye-jolha
Khet khaye gadha mar khaye jolha खेत खाये गदहा मार खाये जोलहा।
उस व्यक्ति को इस नुकसान से क्रोध आया होगा और उस क्रोध के आवेश में उसने सामने पड़ जाने वाले किसी निर्दोष जुलाहे को पीट दिया होगा। यह भी संभव है कि वह गदहा उसी जुलाहे का हो और गदहे के अपराध का दंड उसके मालिक को मिला हो। आधार जो हो लेकिन मूल तथ्य यही है कि सामान्यतः
किसी व्यक्ति द्वारा किये गये अपराध का दंड उसी को मिलता है लेकिन कभी-कभी दोषी के बदले किसी निरपराध को दण्ड मिल जाता है। यह लोकोक्ति इसी तथ्य को व्यंजित करती है। देहात में इसी तरह की एक और उक्ति प्रचलित है
'खाथ भीम आ हग्गथ शकुनि।"
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