प्रश्न-3. विनय पत्रिका के आधार पर गोस्वामी तुलसीदास की भक्ति-भावना का परिचय-प्रस्तुत करें। अथवा, पठित पाठ के आधार पर तुलसी की काव्य-कला की विशेषता बताइये।
उत्तर-गोस्वामी तुलसीदास भक्तिकाल के रामभक्त कवियों में अग्रगण्य और न केवल सम्पूर्ण हिन्दी वाङ्मय में बल्कि सम्पूर्ण विश्व वाङ्मय में सर्वाधिक लोकप्रिय कवि हैं। वे अपने समय के अकेले कवि हैं जिन्हें हिन्दी काव्य-जगत में प्रचलित उक्ति के अनुसार हिन्दी काव्य-गगन का चन्द्र भले ही कहा जाय पर इस सच्चाई से इन्कार कतई नहीं किया जा सकता है कि लोकधर्म
Goswami Tulsidas Ki Bhakti Bhavna
और लोकसंस्कृति की रक्षा के लिए ही उन्होंने भगवान राम को अपना आराध्य मानकर उनके प्रेममय, अनुग्रहपरक एवं शांतिदायक रूप की झाँकी दिखलाते हुए उनके प्रति प्रबल दास्यभाव की भक्ति का परिचय दिया। इतना ही नहीं उन्होंने भक्ति की श्रेष्ठता को प्रतिपादित करने के लिए यत्र-तत्र तर्क भी दिए। उन्होंने भक्ति को दुखों से मुक्ति पाने का एक अमोघ साधन माना। इस दृष्टि से उनकी अग्रांकित पंक्तियाँ द्रष्टव्य हैं
'नहि काल करम न भगति विवेकू
रामनाम अवलम्बन एकू' '
कलियुग केवल हरिगुन गाहा।'-श्री रामचरितमानस
अथवा,
“मूक होई बाचाल, पंगु चढ़ई गिरिबर गहन।
जासू कृपा सो दयाल द्रवहु सकल कलिमनदहन।।"
गोस्वामी तुलसीदास ने एक भक्तकवि के रूप में राम को अपना आराध्य मानकर रामचरित पर भक्ति का ऐसा रंग चढ़ा दिया कि उनके द्वारा व्यापक जनसमूह की भाषा अवधि में रचित 'श्री रामचरितमानस' युग-युग के लिए रामभक्ति का प्रबल आलोक-स्तम्भ बन गया
जिसमें वर्णित जीवन-पद्धति अपने जीवन के उत्थान के लिए सभी को स्वीकार होने लगी। यदि
भक्ति-भावना की दृष्टि से देखा जाय तो हनुमान का दासभाव दास्यभाव की भक्ति का चरम उत्कर्ष माना जा सकता है।
राम गोस्वामी जी के लिए सर्वस्व हैं। वे ही उनके प्राण हैं।
पठित पाठ के आधार पर तुलसी की काव्य-कला की विशेषता बताइये।
उनकी भक्ति का प्रतिपादन करने के लिए ही कवि ने विभिन्न दार्शनिक सिद्धांतों को अपनाया है। यही कारण है कि उनकी भक्ति सर्वत्र दर्शन का आवरण लिये प्रस्तुत होती दृष्टिगत होती है। वे स्पष्ट कहते हैं__ 'राम सो बड़ो है कौन, मोसो कौन छोटो' गोस्वामी जी का मानना है कि मनुष्य का शरीर जीव को बड़े भाग्य से प्राप्त होता है
अतः राम-भजन को ही उसे अपने जीवन में महत्व देना चाहिए और वही उसका कर्म भी होना चाहिए।
वे कहते हैं कि, ___ 'देह धरे का यह फल माई भजिअ राम सब काम बिहाई।।'
गोस्वामी जी सगुण और निर्गुण में किसी प्रकार का कोई भेद नहीं करते हैं तभी तो वे कहते हैं कि,
"सगुनहिं अगुनहिं नहिं कुछ भेदा।
गावहिं मुनि पुरान बुध वेदा।।"
राम के अतिरिक्त गोस्वामी जी को किसी और पर भरोसा बिल्कुल नहीं है
"एक भरोसो एक बल, एक आस विस्वास।
एक राम घनस्याम हित, चातक तुलसीदास।"
बल्कि कलियुग में राम को छोड़कर दूसरा कोई साधन नहीं है जो व्यक्ति को पापों से छुटकारा दिला सके ऐसा गोस्वामी जी का मानना है
"ऐहि कलिकाल न साधन दूजा।
जोग जग्य जप तप मुख पूजा।।"
Goswami Tulsidas Ki Bhakti Bhavna
राम नाम की महिमा अपरम्पार है। उन्हीं की महिमा से गणेश जी की अग्रपूजा होती है या फिर वाल्मीकि आदिकवि हुये। इस 'राम' नाम के साथ कुछ ऐसा है कि वह उल्टा भजे जाने पर भी शुभ फल देता है
"भायँ कुभायँ अनख आलस हूँ।
नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ।।"
राम का नाम राम से बड़ा है अर्थात् राम के नाम का प्रभाव राम से कहीं अधिक है, स्वयं अपना नाम राम भी नहीं ले सकते हैं तभी तो गोस्वामी जी कहते हैं कि,
"कहौं कहा लगि नाम बड़ाई।
राम न सकहिं नाम गुन गाईं।।" '
श्री रामचरितमानस' के सातों कांड यदि भक्त के लिए भक्ति-प्राप्ति के साधन हैं तो 'विनय पत्रिका' आराध्य राम के प्रति भक्तकवि गोस्वामी जी का प्रामाणिक आत्मनिवेदन कहा जा सकता है जिसमें एक भक्त के रूप में गोस्वामी जी की दैन्य और हीनता की विविध रूपों से अत्यंत ही मार्मिक व मर्मस्पर्शी व्यंजना हुई है। गोस्वामी जी बिना किसी दोष को छिपाते हुए राम की शरणागति चाहते हैं
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