Namasate Doston Hasarat Mohani Ke Best Shayari. Ke es post men hum Apke liye laye hain hasarat Mohani 10 se bhi jyada lazawab shayari. Hasrat Mohani (1878-1951) was an Indian independence activist and politician who played a significant role in the Indian independence movement.
He was a prominent leader of the Indian National Congress and was also involved in the Khilafat movement, which sought to defend the rights of the Ottoman Caliphate during the aftermath of World War I. Mohani was born in 1878 in the village of Mohan in the Indian state of Uttar Pradesh
and received his education at Aligarh Muslim University. He was a close associate of Mahatma Gandhi and Jawaharlal Nehru and played a key role in the Non-Cooperation movement and the Salt Satyagraha. He was also a member of the Constituent Assembly of India, which was responsible for drafting the country's constitution after independence.
Hasrat Mohani Shayari हसरत मोहानी शायरी
चुपके चुपके रात दिन आँसू Bahana याद है
हम को अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है
बा-हज़ाराँ इज़्तिराब ओ सद-हज़ाराँ इश्तियाक़
तुझ से वो पहले-पहल दिल का Lagana याद है
बार बार उठना Usi जानिब निगाह-ए-शौक़ का
और तिरा ग़ुर्फ़े से वो आँखें लड़ाना याद है
तुझ से कुछ मिलते ही वो बेबाक हो जाना मिरा
और तिरा दाँतों में वो उँगली Dabana याद है
खींच लेना वो मिरा पर्दे का कोना दफ़अ'तन
और दुपट्टे से तिरा वो मुँह Chupana याद है
जान कर सोता तुझे वो क़स्द-ए-पा-बोसी मिरा
और तिरा ठुकरा के सर वो Mushkurana याद है
तुझ को जब तन्हा कभी पाना तो अज़-राह-ए-लिहाज़
हाल-ए-दिल बातों ही Baton में जताना याद है
जब सिवा मेरे तुम्हारा कोई Diwana न था
सच कहो कुछ तुम को भी वो कार-ख़ाना याद है
ग़ैर की नज़रों से बच कर सब की मर्ज़ी के ख़िलाफ़
वो तिरा चोरी-छुपे Raton को आना याद है
आ गया Gar वस्ल की शब भी कहीं ज़िक्र-ए-फ़िराक़
वो तिरा रो रो के मुझ को भी रुलाना याद है
दोपहर की धूप में मेरे बुलाने के लिए
वो तिरा कोठे पे नंगे पाँव Aana याद है
आज तक नज़रों में है वो सोहबत-ए-राज़-ओ-नियाज़
अपना जाना याद है तेरा Bulana याद है
मीठी मीठी छेड़ कर बातें निराली प्यार की
ज़िक्र दुश्मन का वो बातों में Udana याद है
देखना मुझ को जो बरगश्ता तो सौ सौ नाज़ से
जब मना लेना तो Fir ख़ुद रूठ जाना याद है
चोरी चोरी हम से तुम आ कर मिले थे जिस जगह
मुद्दतें गुज़रीं पर अब तक वो Thikana याद है
शौक़ में मेहंदी के वो बे-दस्त-ओ-पा होना तिरा
और मिरा वो छेड़ना वो Gudgudana याद है
बावजूद-ए-इद्दिया-ए-इत्तिक़ा 'हसरत' मुझे
आज Tak अहद-ए-हवस का वो फ़साना याद है
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