Diwali essay, Paragraph on Diwali, Diwali essay in Hindi, Diwali par Nibandh. दीपावली हिन्दुओं का महत्वपूर्ण त्योहार है। इसका ऐतिहासिक महत्व है। किंवदंती है कि रामचन्द्रजी रावण-वध के पश्चात अयोध्या इसी तिथि को लौटे थे। उनके स्वागतार्थ अयोध्या नगरी प्रकाश-दीपों से सुसज्जित हुई।
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स्वच्छता की दृष्टि से भी यह त्योहार मनाया जाता है। परम्परा से हिन्दुओं में यह विश्वास चला आता है कि घर और बाहर की सफाई न होने से उनके घर में लक्ष्मी जी का प्रवेश नहीं होता। यह इस त्योहार की उत्पत्ति का एक कारण है।
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त्योहार के एक दो सप्ताह पूर्व से टूटे हुए घरों की पुताई और रंगाई की जाती है। लोग आर्थिक स्थिति के अनुसार घर की मरम्मत व सफाई करते हैं। देहात में भी घर-घर लिपाई और पुताई होती है। भारत के हर एक नगर अथवा ग्राम में एक तरह से प्रतिवर्ष घरों का जीर्णोद्वार होता है। स्त्रियाँ तरह-तरह की मिठाईयाँ तथा पकवान बनाती हैं।
नये बर्तन मोल लिए जाते हैं और टूटे-फूटे बेचे जाते हैं। इसी समय ऋतु परिवर्तन भी होता है, इसलिए नये वस्त्र भी बनवाये जाते हैं। सारांश यह कि प्रत्येक वस्तु नई दृष्टिगोचर होती है। दीपावली अवसर पर घर और बाजार की छटा भी निराली होती है। दूकानें खूब सजाई जाती हैं। व्यापारी नये बही खाते खोलते हैं और पुराने बन्द करते हैं।
हलवाई तरह-तरह की मिठाइयों से दूकाने सजाते हैं। कोई-कोई शक्कर की इमारत बनाते हैं। ठठेरी बाजार का दृश्य अपूर्व होता है। वहाँ रोशनी और बर्त्तन की चमक से आँख चकाचौंध हो जाती है। ग्राहकों की इतनी भीड़ होती है कि सरलता से कोई निकल नहीं सकता।
मारे धक्कों के पसीना आ जाता है विभिन्न प्रकार के बर्तनों की बिक्री खूब धड़ल्ले से होती है। दूकानदार मनमाने दाम लेते हैं और ग्राहक देते हैं। किसी मुख्य बाजार के अतिरिक्त नगर के प्रत्येक चौराहे पर खिलौने की दूकान लगती है। नागरिक बच्चों की इच्छा के अनुसार खिलौने मोल लेते हैं।
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खेद का विषय है कि भारत की परतंत्रता ने इस रोजगार को भी मार दिया। नवीनी रोशनी के लोग जर्मनी और जापान के बने हुए टीन, चीनी मिट्टी के खिलौने मोल लेते हैं उन्हें यहाँ के गरीब कुम्हारों का तनिक भी विचार नहीं होता। मिट्टी के खिलौने क्षणभंगुर होते हैं। किन्तु उससे कितने गरीबों का पेट पलता है।अन्धेरा होते ही सारा शहर बिजली की बत्तियों और मिट्टी के दीपों के प्रकाश से जगमगाने लगता है। घोर अन्धियारी रात्रि दिन की तरह प्रतीत होती है, दीपशिखाओं की छटा निराली होती है। वे वायु से नृत्य तथा अठखेलियाँ करती हैं। दुर्भाग्यवश प्रचंड वायु हुई तो दुध मुँहें शिशुओं की तरह अपनी जीवन लीला समाप्त किये बिना चल बसते हैं।
धनिकों की उच्च अटालिकाएँ विद्युत के प्रकाश में इतनी चमकती हैं कि आँख नहीं ठहरती। जिधर देखिये उधर लक्ष्मी पूजन होती है और खीरों तथा मिठाइयों का प्रसाद बाँटा जाता है। यह कार्यक्रम आधी रात तक होता रहता है।
पूजन के पश्चात् कुछ लोग जुआ खेलते हैं।
मूों का यह कथन है कि अपने भाग्य की परीक्षा लेने के लिए हर हिन्दू का कर्त्तव्य है कि वह जुआ खेले क्योंकि ऐसा करना हमारे धर्म शास्त्रों का प्रमाण है। किन्तु हमारे शास्त्र ऐसा पापकर्म करने की अनुमति नहीं देते । इसी द्यूत के कारण द्रौपदी का भरी सभा में अपमान हुआ और अन्त में कौरव-पाण्डव युद्ध हुआ।
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हमारी सरकार प्रतिवर्ष इस कुप्रथा को मिटाने का प्रयत्न करती है फिर भी कुछ लोग किसी-न-किसी बहाने जुआ खेलते हैं। दीपावली हमास राष्ट्रीय पर्व ही नहीं सांस्कृतिक पर्व भी है। इसके साथ हमारे सांस्कृतिक जीवन की अनेक कथाएँ जुड़ी हुई हैं।
पौराणिक आख्यानों के अनुसार रावण-विजय के उपरान्त राम के अयोध्या लौटने पर वहाँ के जनसमुदाय ने दीपमालिका जला कर राम और उनकी विजय का सम्मान किया। उसी की स्मृति को सुरक्षित रखने के लिए हम प्रति-वर्ष इस उत्सव को मनाते हैं। दूसरे आख्यान के अनुसार श्री कृष्ण ने मानवद्रोही तारकासुर का बध किया था।
उसी उपलक्ष्य में दीपमालिका का यह त्योहार मनाया जाता है। दीपों के इस उत्सव के साथ लक्ष्मी के आगमन की अनेक कथाएँ भी जुड़ी हैं। लोगों की यह धारणा है कि लक्ष्मी श्री, समृद्धि और मंगल की देवी हैं। आलोक के प्रति उनका सहज आकर्षण है। अतः इस दिन लोग दीप जलाकर उनके स्वागत की तैयारी करते हैं। जिसके घर अँधेरा रहता है, वह हत-भाग्य माना जाता है।
दीपावली के त्योहार का सामाजिक पक्ष भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। बरसात में प्रायः हमारे घर कमजोर और विकृत हो जाते हैं। कच्चे घरों की तो और भी दुर्दशा हो जाती है। यदि उनकी समय पर मरम्त नहीं की जाय तो घर गिर पड़ेंगे और हम पर अनावश्यक व्यय बढ़ेगा।
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अतः Dipawli का उत्सव मनाने के बहाने हम अपने घरों की मरम्मत और सफाई करते हैं, उसे पालिस आदि से रंग देते हैं, भीतर-बाहर की गन्दगी साफ कर देते हैं और इस तरह घर स्वच्छ होकर केवल सुन्दर ही नहीं, मजबूत भी हो जाते हैं। सफाई का यह अभियान स्वास्थ्य की दृष्टि से बड़ा उपयोगी सिद्ध होता है। वर्षा के कारण न जाने कितने कीटाणु पैदा हो जाते हैं, मच्छड़ों और कीड़ों का साम्राज्य स्थापित हो जाता है
और सारे वातावरण में एक सीलन और विकृति नजर आती है। यह सब सफाई और आलोक-पर्व के द्वारा समाप्त हो जाता है और हम आगे के दिनों में स्वस्थ वातावरण में रहने की स्थिति में हो जाते हैं। असंख्य दीपों पर कीड़ों की फौज टूटती है और जलकर नष्ट हो जाती है। इस प्रकार दीपावली केवल धर्म और राष्ट्रीयता का ही नहीं स्वराज्य, सुव्यवस्था और सौन्दर्य का त्योहार भी सिद्ध होता है।
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