Skip to main content

Essay, Nibandh, Paragraph, Essay writing In Hindi निबंध क्या होता है?

Essay, Nibandh, Paragraph, Essay writing In Hindi Nibandh Kya Hota hai. Aj Ke Es Article Men Hum Janenge Nibandh Ke Bare Men Jise Hum Essay, Nibandh, Paragraph Aadi Bolte Hain. Personality, openness, spontaneity, etc. are the unique characteristics of the article. In the essay style, there is a predominance of a relaxed atmosphere. The word 'essay' is popular in English as a synonym for 'Essa'.

Essay,Nibandh,Paragraph,Essay-writing-In-Hindi
Nibandh, Paragraph, Essay writing In Hindi

Essay, Nibandh, Paragraph, Essay writing In Hindi निबंध क्या होता है?

निबन्ध' शब्द अंग्रेजी का 'Essay' के पर्याय के रूप में प्रचलित है। Essay या निबन्ध नामक साहित्यिक विधा को स्वतंत्र व्यक्तित्व देने का श्रेय फ्रांसीसी लेखक मौन्तेन को है। मौन्तेन की दृष्टि से व्यक्तिगत भाव-विचारों को कलात्मक रूप से पिरो देना ही निबंध है। 'एसे' का शाब्दिक अर्थ है प्रयास करना। यह प्रयास व्यक्तिगत है अर्थात् अपने को अभिव्यक्त करना है। 

व्यक्तिनिष्ठता, स्वच्छन्दता, सहजता आदि निबन्ध के विशेष लक्षण हैं। निबन्ध में पाण्डित्य की अपेक्षा आत्मीयता की प्रधानता होती है। इसमें विषय की अपेक्षा विषयी अर्थात् लेखक का महत्व अधिक होता है। वस्तुतः लेखक विषय को एक बहाना के रूप में स्वीकार करता है और मन की उमंग में स्वच्छन्द भाव से विचरण करता हुआ अपने मंतव्य तक पहुँचता है। इसलिए निबंध की शैली में शैथिल्यपूर्ण वातावरण की प्रधानता होती है। सारांशतः निबन्ध में लेखक अपने आप को व्यक्त करने का प्रयास करता है। 

निबन्ध के निम्नलिखित तत्व माने जा सकते हैं 

(1) निजता या व्यक्तिनिष्ठता (2) सहजता (3) स्वच्छन्दता (4) भावावेग (5) ऊपरी बिखराव के भीतर आन्तरिक एकसूत्रता (6) शैलीगत शिथिलता (7) लालित्य (8) आत्मीयता। 

इन तत्वों का | अभिप्राय यह है कि निबन्ध में विषय का महत्व गौण रहता है। लेखक अपने मन की बात करता है। वह सीधी रेखा में अपने लक्ष्य की ओर न जाकर तितली की भाँति इधर-उधर फूल-फल पर अर्थात् रसात्मक प्रसंगों पर रमता चलता है। उसकी शैली में सजावट नहीं शिथिलता रहती है। 

वह अपनी भावुकता के बल पर पाठक को अपने साथ लिए चलता है। पाठक को लगता है कि वह अपने किसी प्रियजन के साथ मनोरम बातचीत में रमा हुआ है। यह सब इतने विश्वास के साथ होता है कि सर्वत्र आत्मीयता की अनुभूति होती रहती है। विचारों के बीच रस के छीटे और रस यात्रा के बीच विचारों की कौंध मन को बाँधती चलती है। इसलिए डॉ॰ जान्सन ने निबन्ध को मन की उच्छल तरंग कहा है।

'निबन्ध' शब्द अंग्रेजी का 'Essay' के पर्याय के रूप में प्रचलित है। Essay या निबन्ध नामक साहित्यिक विधा को स्वतंत्र व्यक्तित्व देने का श्रेय फ्रांसीसी लेखक मौन्तेन को है। मौन्तेन की दृष्टि से व्यक्तिगत भाव-विचारों को कलात्मक रूप से पिरो देना ही निबंध है। एसे' का शाब्दिक अर्थ है प्रयास करना। यह प्रयास व्यक्तिगत है अर्थात् अपने को अभिव्यक्त करना है।

Essay, Nibandh, Paragraph

व्यक्तिनिष्ठता, स्वच्छन्दता, सहजता आदि निबन्ध के विशेष लक्षण हैं। निबन्ध में पाण्डित्य की अपेक्षा आत्मीयता की प्रधानता होती है। इसमें विषय की अपेक्षा विषयी अर्थात् लेखक का महत्व अधिक होता है। वस्तुतः लेखक विषय को एक बहाना के रूप में स्वीकार करता है और मन की उमंग में स्वच्छन्द भाव से विचरण करता हुआ अपने मंतव्य तक पहुँचता है। 

इसलिए निबंध की शैली में शैथिल्यपूर्ण वातावरण की प्रधानता होती है। सारांशत: निबन्ध में लेखक अपने आप को व्यक्त करने का प्रयास करता है। 

निबन्ध के निम्नलिखित तत्व माने जा सकते हैं - 

(1) निजता या व्यक्तिनिष्ठता (2) सहजता (3) स्वच्छन्दता (4) भावावेग (5) ऊपरी बिखराव के भीतर आन्तरिक एकसूत्रता (6) शैलीगत शिथिलता (7) लालित्य (8) आत्मीयता। इन तत्वों का अभिप्राय यह है कि निबन्ध में विषय का महत्व गौण रहता है। 

लेखक अपने मन की बात करता है। वह सीधी रेखा में अपने लक्ष्य की ओर न जाकर तितली की भाँति इधर-उधर फूल-फल पर अर्थात् रसात्मक प्रसंगों पर रमता चलता है। उसकी शैली में सजावट नहीं शिथिलता रहती है। वह अपनी भावुकता के बल पर पाठक को अपने साथ लिए चलता है। पाठक को लगता है कि वह अपने किसी प्रियजन के साथ मनोरम बातचीत में रमा हुआ है। 

यह सब इतने विश्वास के साथ होता है कि सर्वत्र आत्मीयता की अनुभूति होती रहती है। विचारों के बीच रस के छीटे और रस यात्रा के बीच विचारों की कौंध मन को बाँधती चलती है। इसलिए डॉ. जान्सन ने निबन्ध को मन की उच्छल तरंग कहा है। 

Comments

Popular posts from this blog

Sagun Kavya Dhara Kya Hai | Virtuous poetry | सगुण काव्य-धारा

Sagun Kavya Dhara Kya Hai | Virtuous poetry | सगुण काव्य-धारा.  Saguna means virtue, here virtue means form. We have already known that devotion, believing in the form, shape, incarnation of God, is called Saguna Bhakti . It is clear that in the Sagun Kavadhara, the pastimes of God in the form of God have been sung. It says - Bhakti Dravid Uppji, Laya Ramanand. Sagun Kavya Dhara Kya Hai | Virtuous poetry | सगुण काव्य-धारा Ans. सगुण का अर्थ है गुण सहित, यहाँ पर गुण का अर्थ है- रूप। यह हम जान ही चुके हैं कि ईश्वर के रूप, आकार,अवतार में विश्वास करने वाली भक्ति सगुण भक्ति कहलाती है। स्पष्ट है कि सगुण काव्यधारा में ईश्वर के साकार स्वरूप की लीलाओं का गायन हुआ है। कहते हैं - भक्ति द्राविड़ ऊपजी, लाये रामानंद।'  अर्थात् सगुण भक्तिधारा या वैष्णव (विष्णु के अवतारों के प्रति) भक्ति दक्षिण भारत में प्रवाहित हुई। उत्तर भारत में इसे रामानंद लेकर आए। राम को विष्णु का अवतार मानकर उनकी उपासना का प्रारंभ किया। इसी प्रकार वल्लभाचार्य ने कृष्ण को विष्णु का अवतार मानकर उनकी उपासना का प्रारंभ किया। इ

विद्यापति का संक्षिप्त जीवन-वृत्त प्रस्तुत करते हुए उनके काव्यगत वैशिष्ट्य पर प्रकाश डालें। अथवा, विद्यापति का कवि-परिचय प्रस्तुत करें।

विद्यापति का संक्षिप्त जीवन-वृत्त प्रस्तुत करते हुए उनके काव्यगत वैशिष्ट्य पर प्रकाश डालें। अथवा, विद्यापति का कवि-परिचय प्रस्तुत करें। उपर्युक्त पद में कवि विद्यापति द्वारा वसंत को एक राजा के रूप में उसकी पूरी साज-सज्जा के साथ प्रस्तुत किया गया है अर्थात् वासंतिक परिवंश पूरी तरह से चित्रित हुआ है। अपने आराध्य माधव की तुलना करने के लिए कवि उपमानस्वरूप दुर्लभ श्रीखंड यानी चंदन, चन्द्रमा, माणिक और स्वर्णकदली को समानता में उपस्थित करता है किन्तु सारे ही उपमान उसे दोषयुक्त प्रतीत होते हैं, यथा-'चंदन' सुगंधि से युक्त होकर भी काष्ठ है 'चन्द्रमा' जगत को प्रकाशित करता हुआ भी एक पक्ष तक सीमित रहता है, माणिक' कीमती पत्थर होकर भी अन्ततः पत्थर है तथा स्वर्ण-कदली लज्जावश हीनभाव के वशीभूत होकर यथास्थान गड़ी रहती है ऐसे में कवि को दोषयुक्त उपमानों से अपने आराध्य की तुलना करना कहीं से भी उचित नहीं लगता है अत: माधव जैसे सज्जन से ही नेह जोड़ना कवि को उचित जान पड़ता है। इस दृष्टि से अग्रांकित पंक्तियाँ देखी जा सकती हैं विद्यापति का संक्षिप्त जीवन-वृत्त प्रस्तुत करते हुए उनके

सूरदास की भक्ति-भावना के स्वरूप की विवेचना कीजिए। अथवा, सूरदास की भक्ति-भावना की विशेषताओं पर प्रकाश डालिये।

सूरदास की भक्ति-भावना के स्वरूप की विवेचना कीजिए। अथवा, सूरदास की भक्ति-भावना की विशेषताओं पर प्रकाश डालिये।  उत्तर-'भक्ति शब्द की निर्मिति में 'भज् सेवायाम' धातु में 'क्तिन' प्रत्यय का योग मान्य है जिससे भगवान का सेवा-प्रकार का अर्थ-ग्रहण किया जाता है जिसके लिए आचार्य रामचंद्र शुक्ल श्रद्धा और प्रेम का योग अनिवार्य मानते हैं। ऐसा माना जाता है कि भक्ति को प्राप्त होकर समस्त लौकिक बन्धनों एवं भौतिक जीवन से ऊपर उठ जाता है जहाँ उसे अलौकिक आनन्द की अनुभूति होती है। भक्ति के लक्षण की ओर संकेत करते हुए भागवतंकार कहते हैं "स वै पुंसां परोधर्मो यतोभक्ति रमोक्षजे। अहेतुक्य प्रतिहताययाऽऽत्मा संप्तसीदति।।" उपर्युक्त श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण के प्रति व्यक्ति में उस भक्ति के उत्पन्न होने की अपेक्षा की गई है जिसकी निरन्तरता व्यक्ति को कामनाओं से ऊपर पहुँचाकर कृतकृत्य करती है। _ हिन्दी साहित्येतिहास में भक्तिकालीन कवि सूरदास कृष्णभक्त कवियों में सर्वाधिक लोकप्रिय और सर्वोच्च पद पर आसनस्थ अपनी युग-निरपेक्ष चिरन्तन काव्य-सर्जना की दृष्टि से अद्वितीय कवि हैं जिनके द्वारा प