Skip to main content

Indian farmer essay, Indian farmer Par Nibandh, Paragraph Indian farmer

Indian farmer essay, Indian farmer Par Nibandh, Paragraph Indian farmer. भारतीय किसान स्वामी सहजानन्द सरस्वती के आजीवन अथक परिश्रम के परिणामस्वरूप जमींदारी प्रथा की समाप्ती हुई। किसानों की स्थिति में कुछ सुधार भी हुआ। लेकिन वर्तमान काल में नेतृत्व के अभाव के कारण भयंकर शोषण का शिकार भारतीय किसान हो गये हैं। पूँजीपति. वर्ग नित्य दोहन करने

Indian-farmer-essay,Indian-farmer-Par-Nibandh,Paragraph-Indian-farmer
Indian farmer essay

में लगे हुए है। आज का किसान कर्ज में जन्म लेता है, कर्ज में पलता है और उसी में मर जाता है। वर्तमान काल के भारतीय किसानों के ऊपर लिखी गयी दिनकर की निम्नलिखित पंक्तियां बिलकुल सार्थक लग रही है।

Indian farmer essay, Indian farmer Par Nibandh, Paragraph Indian farmer

"मुख में जीभ, शक्ति भुज में जीवन में सुख का नाम नहीं है वसन कहां ? सूखी रोटी भी मिलती दोनों शाम नहीं है"

संघर्ष, शोषण और बेचैनी की जिन्दी जीने वाले किसान को दो जून की रोटी के अलावा कुछ भी मिल पाना मुष्किल होता है। वह गाय भी पालता है, भैंस भी दुहता है अन्न भी पैदा करता है लेकिन अपने लिए नहीं, शहर में बसे हुए मुफ्तखोरी के लिए जिसे देखते हुए बी.पी. सिन्हा जी ने कहा है। .

"गांवों में बंधी भैंस, शहर दूध पी रहा, यह देख लो कि खेत बिना शहर जी रहा। गांवों से शहर घेर दो ये दूध पी गये सात लाख गांव के मजमून पी गये।"

जेठ की दोपहरी हो या जाड़े की सुबह या बरसात की आधी रात, इसे हर बख्त अपने खेत खलिहान में जाने के लिए तैयार रहना पड़ता है। जब शहरी लोगों को लगा कि इतने शोषण के बाद भी किसान के लड़के पढ़ने-लिखने में हमारे बच्चों को पछाड़कर आगे बढ़े जा रहे हैं तब उन्होंने ताश का एक और पत्ता नक्सलवादी के रूप में चला दिया। परिणम भयंकर निकला। आज मजदूर और किसान आपस में लड़ रहे हैं।

Indian farmer essay, Indian farmer Par Nibandh, Paragraph Indian farmer

जात-पात, गरीब-अमीर के नाम पर इन्होंने 85% आबादी को अशिक्षित होने के नाते आपस में तोड़कर रख दिया है।

समाज की विषमता का भयंकर चित्रण दिनकर जी ने किया है, एक तरफ कुत्तों को पीने के लिए दूध मिलता है, सोने के लिए आरामदायक बिछावन मिलता है, घूमने के लिए कीमती गाड़ियां मिलती है तो दूसरी तरफ मानव दवा और भोजन के अभाव में तड़प-तड़प कर मरते रहता है।

यद्यपि सरकार की तरफ से अनेक कल्याणकारी योजनाएँ किसानों के लिए चलाई जाती रही है। पर जानकारी के अभाव में इसका समुचित लाभ किसानों को नहीं मिल पाया है।

    किसानों द्वारा पैदा की जाने वाली वस्तुओं को उचित मूल्य भी नहीं मिल पा रहा है। अतः किसानों को संगठित होकर कृषि को उद्योग का दर्जा दिलवाने के लिए लड़ाई लड़नी पड़ेगी और अपना रास्ता स्वयं ढूँढना पड़ेगा। अन्यथा भारतीय किसान का कल्याण किसी भी हालत में नहीं होगा।


    Comments

    Popular posts from this blog

    Sagun Kavya Dhara Kya Hai | Virtuous poetry | सगुण काव्य-धारा

    Sagun Kavya Dhara Kya Hai | Virtuous poetry | सगुण काव्य-धारा.  Saguna means virtue, here virtue means form. We have already known that devotion, believing in the form, shape, incarnation of God, is called Saguna Bhakti . It is clear that in the Sagun Kavadhara, the pastimes of God in the form of God have been sung. It says - Bhakti Dravid Uppji, Laya Ramanand. Sagun Kavya Dhara Kya Hai | Virtuous poetry | सगुण काव्य-धारा Ans. सगुण का अर्थ है गुण सहित, यहाँ पर गुण का अर्थ है- रूप। यह हम जान ही चुके हैं कि ईश्वर के रूप, आकार,अवतार में विश्वास करने वाली भक्ति सगुण भक्ति कहलाती है। स्पष्ट है कि सगुण काव्यधारा में ईश्वर के साकार स्वरूप की लीलाओं का गायन हुआ है। कहते हैं - भक्ति द्राविड़ ऊपजी, लाये रामानंद।'  अर्थात् सगुण भक्तिधारा या वैष्णव (विष्णु के अवतारों के प्रति) भक्ति दक्षिण भारत में प्रवाहित हुई। उत्तर भारत में इसे रामानंद लेकर आए। राम को विष्णु का अवतार मानकर उनकी उपासना का प्रारंभ किया। इसी प्रकार वल्लभाचार्य ने कृष्ण को विष्णु का अवतार मानकर उनकी उपासना का प्रारंभ किया। इ

    विद्यापति का संक्षिप्त जीवन-वृत्त प्रस्तुत करते हुए उनके काव्यगत वैशिष्ट्य पर प्रकाश डालें। अथवा, विद्यापति का कवि-परिचय प्रस्तुत करें।

    विद्यापति का संक्षिप्त जीवन-वृत्त प्रस्तुत करते हुए उनके काव्यगत वैशिष्ट्य पर प्रकाश डालें। अथवा, विद्यापति का कवि-परिचय प्रस्तुत करें। उपर्युक्त पद में कवि विद्यापति द्वारा वसंत को एक राजा के रूप में उसकी पूरी साज-सज्जा के साथ प्रस्तुत किया गया है अर्थात् वासंतिक परिवंश पूरी तरह से चित्रित हुआ है। अपने आराध्य माधव की तुलना करने के लिए कवि उपमानस्वरूप दुर्लभ श्रीखंड यानी चंदन, चन्द्रमा, माणिक और स्वर्णकदली को समानता में उपस्थित करता है किन्तु सारे ही उपमान उसे दोषयुक्त प्रतीत होते हैं, यथा-'चंदन' सुगंधि से युक्त होकर भी काष्ठ है 'चन्द्रमा' जगत को प्रकाशित करता हुआ भी एक पक्ष तक सीमित रहता है, माणिक' कीमती पत्थर होकर भी अन्ततः पत्थर है तथा स्वर्ण-कदली लज्जावश हीनभाव के वशीभूत होकर यथास्थान गड़ी रहती है ऐसे में कवि को दोषयुक्त उपमानों से अपने आराध्य की तुलना करना कहीं से भी उचित नहीं लगता है अत: माधव जैसे सज्जन से ही नेह जोड़ना कवि को उचित जान पड़ता है। इस दृष्टि से अग्रांकित पंक्तियाँ देखी जा सकती हैं विद्यापति का संक्षिप्त जीवन-वृत्त प्रस्तुत करते हुए उनके

    सूरदास की भक्ति-भावना के स्वरूप की विवेचना कीजिए। अथवा, सूरदास की भक्ति-भावना की विशेषताओं पर प्रकाश डालिये।

    सूरदास की भक्ति-भावना के स्वरूप की विवेचना कीजिए। अथवा, सूरदास की भक्ति-भावना की विशेषताओं पर प्रकाश डालिये।  उत्तर-'भक्ति शब्द की निर्मिति में 'भज् सेवायाम' धातु में 'क्तिन' प्रत्यय का योग मान्य है जिससे भगवान का सेवा-प्रकार का अर्थ-ग्रहण किया जाता है जिसके लिए आचार्य रामचंद्र शुक्ल श्रद्धा और प्रेम का योग अनिवार्य मानते हैं। ऐसा माना जाता है कि भक्ति को प्राप्त होकर समस्त लौकिक बन्धनों एवं भौतिक जीवन से ऊपर उठ जाता है जहाँ उसे अलौकिक आनन्द की अनुभूति होती है। भक्ति के लक्षण की ओर संकेत करते हुए भागवतंकार कहते हैं "स वै पुंसां परोधर्मो यतोभक्ति रमोक्षजे। अहेतुक्य प्रतिहताययाऽऽत्मा संप्तसीदति।।" उपर्युक्त श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण के प्रति व्यक्ति में उस भक्ति के उत्पन्न होने की अपेक्षा की गई है जिसकी निरन्तरता व्यक्ति को कामनाओं से ऊपर पहुँचाकर कृतकृत्य करती है। _ हिन्दी साहित्येतिहास में भक्तिकालीन कवि सूरदास कृष्णभक्त कवियों में सर्वाधिक लोकप्रिय और सर्वोच्च पद पर आसनस्थ अपनी युग-निरपेक्ष चिरन्तन काव्य-सर्जना की दृष्टि से अद्वितीय कवि हैं जिनके द्वारा प