Kanak-Bhudhar Shikhar Vasini Shirshak Path ka bhavarth prastut karen. कनक-भूधर शिखर वासिनी' शीर्षक पद का भावार्थ प्रस्तुत करें।
Kanak-Bhudhar Shikhar Vasini Shirshak Path ka bhavarth prastut karen. कनक-भूधर शिखर वासिनी' शीर्षक पद का भावार्थ प्रस्तुत करें। उत्तर-'कनक भूधर शिखर वासिनी' शीर्षक पद महाकवि विद्यापति की एक भक्ति-परक रचना है जो उनकी पदावली के अन्तर्गत है। इसमें जगत जननी आदिशक्ति (महाशक्ति) के प्रति कवि की भक्ति-भावना की अभिव्यक्ति हुई है। - स्वर्ण पर्वत के उत्तुंग शिखर पर निवास करने वाली आदि-शक्ति ही महाशक्ति
कनक-भूधर शिखर वासिनी' शीर्षक पद का भावार्थ प्रस्तुत करें।
अथवा माता दुर्गा हैं जिनका स्वरूप भव्य है। सम्पूर्ण जगत का सृजन, पालन एवं संहार उन्हीं के द्वारा होता है। वह ब्रह्मांड एवं अंतरिक्ष के गूढतम रहस्यों को जानने वाली है। वे युद्धभूमि में अपने हाथों में परशु-पाश-कृपाण-धनुर्वाण, शंख, चक्र आदि धारण किये रहती हैं तथा असुरों से डरे-सहमे अपने भक्तों के भय को दूर करती है।
महिषासुर, शुम्भासुर और निशुम्भ जैसे असुरों का नाश कर उन्होंने ही अपने भक्तों को भयमुक्त किया। आदिशक्ति ही सम्पूर्ण ब्रह्मांड की मूलशक्ति है। सम्पूर्ण दृश्य जगत उन्हीं से प्रसार पाता है फिर उन्हीं में लय हो जाता है। आठ भैरवियों से घिरी रहने वाली भयंकरता की देवी मानी जाने वाली माता अपने गले में अपने ही हाथों से काटे गए
मुण्डों की माला धारण किये रहती है जो दैत्यों के रक्त से संतोष प्राप्त करती है और योगिनियों द्वारा गाये जाने वाले संगीत से आनन्द। सूर्य, चन्द्रमा एवं अग्नि ही उनके नेत्र हैं। उनके चरणों की वन्दना ब्रह्मा, विष्णु, महेश एवं कामदेव करते हैं। अन्त में कवि द्वारा अपने आश्रयदाता राजा शिवसिंह की समस्त मनोकामनाओं के पूरे होने के लिए देवी के प्रति प्रार्थना निवेदित की गयी है।
प्रस्तुत पद में वैदिक विचारधारा के अन्तर्गत मान्य शक्ति के मूल स्त्रोत स्वरूप महाशक्ति या आदिशक्ति के प्रति अपनी भक्ति-भावना की अभिव्यक्ति करते हुए महाकवि विद्यापति ने अपने शाक्त होने का परिचय दिया। शाक्तों की ऐसी मान्यता रही है कि महाशक्ति भक्ति के अधीन होती है जिन्हें वही प्राप्त करता है जो उनकी उपासना करता है। अपनी उपासना से प्रसन्न होने पर महाशक्ति अपने भक्तों के सारे मनोरथ पूरे करती हैं,
असुरों के भय से डरे-सहमें अपने भक्तों को भय-मुक्त करती है और समस्त पापों का नाश करती है। सम्पूर्ण दृश्य जगत में उन्हीं का प्रसार दिखायी पड़ता है। वे ही सम्पूर्ण सृष्टि का सृजन, पालन एवं संहार करती हैं। तात्पर्यतः ब्रह्मांड के समस्त कार्य-व्यापारों का मूल कारण वे ही हैं।
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