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Essay on feminism नारीवाद पर निबंध

Essay on feminism नारीवाद पर निबंध हमारे परिवारों में पुरुष सूर्य की तरह है। उनका प्रकाश अपना होता है क्योंकि वह संसाधनों के मालिक है । उनके पास आय है और आमने-फिरने तथा निर्णय लेने की आजादी है। महिलाएं उपग्रहो की भांति हैं, जिनके पास अपना कोई प्रकाश नहीं होता, वह तभी प्रकाशित होती है जब सूर्य की रोशनी उन तक पहुंचती है।

Essay-on-feminism
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जीवन के प्रत्येक छोह में पुरुचो के परावर स्त्रियों के आकारों के समर्थन से उत्पन्न हुए सामाजिक आन्दोलन को नारीवाद कहा जाता है। यह एक ऐसा विचार है जो स्त्री - पुरुष के बीच असमानता को अस्तीकार कर नारी के बौद्विक और व्यवहारिक रूप में सहाळतीकरण पर बल देता है। 

Essay on feminism नारीवाद पर निबंध

यह लैगिक वात को अस्वीकार करता है जो मूलत: नारी की हीन शिति का प्रमुख कारण है। इस विचार धारा की उत्पाति प्रमुखतः पित्सलात्मक ला ( पुरुध -प्रभुत्व या पुरुष द्वारा शाक्त- के दुरुपयोग करने की सत्ता) के विरोध स्वरुप उत्पन्न हुआ।

इसकी व्याख्या मोटे तौरपर दो कपों में की गयी है। संकचित अर्थ में एक राजनीतिक विचारधारा के रूप में, नारीवाद महिलाओं द्वारा महिलाओं के लिए समानता हैतु किया गया एक सामाजिक आन्दोलन है जो लिंगवाई

सिद्वान्त , अर्थात पुरुष वर्चस्तता तथा सामाजिक शोषण की समाप्ति पर बल देता है। विस्तृत अर्थ में नारीवादी कई भिन्न' परन्तु अंतसंबंधित संकल्पनाओं का एक पुंज है जिसका प्रयोग जेडर की सामाजिक यथार्थता तथा लिंगअसमानता की उत्पालि मनात' तथा परिणामो' के अध्ययन एव तिजत्लेषण में किया जाता है। 

एक आन्दोलन के रूप में नारवाद का जन्म कल और कैसे हुआ , इस संबंध में निश्चितता नहीं है। यही नहीं . इस आन्दोलन के उद्देश्य तथा संचालन मैं भी मिन्नता देखने को मिली है। ऐसा माना जाता है कि नारीबाद का आरम्म एक राजनीतिक आन्दोलन (समान राजनीतिक मलाधिकार ) के रूप में हुई थी। 

बाद में यह आन्दोलन न केवल स्त्रियों के विकास वाल्क उनकी सामाजिक मास्थिति में सुधार लाने के क्षेत्र में फैल गाया। इस आन्दोलन ने सामाजिक, आन्दोलनों को तो प्रभावित किया ही हैं. धीरे - धीरे इसने भाकृतिक विज्ञानो' में भी अपने पैर - पसारने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। 

मैसाच्यूसेट इन्स्टीच्यूट आफ टेक्नालोधी संस्थान में विज्ञान के दर्शन शास्त्र और इतिहास की टीचर इलिविन फाप्लस लर' ने अपनी पुस्तक ' रिफ्लेक्शन आन जैण्डर साईम में नारीवाद पर अपने विचार व्यक्त करते हुए लिखा है कि " 'माकृतिक विज्ञान विशेषरूप में प्राकृतिक

जीवशास्त्री भी पुरुषवादी सोच की गिरफ्त में जको दुर है। किन्तु नारीवादी समीक्षा के प्रकाश में विज्ञानी में भी परिवर्तन

आ रहा है। भाधुनिक जीवविज्ञान नारी महत्व को दर्शाता हैं, जिसके कारण विज्ञान जगत में भी वियो की दशा में परिवर्तन | ला दिया है। दो सौ साल पहले विश्व की पहली नारीतादिन मेरी उलनस्टोनक्राफ्ट ने कहा था- मैं ये नहीं | कहती कि “पुरुष के बदले अव स्त्री का तस्त' “पुरुष पर स्थापित | 

हो । जरुरत तो प्रस बात की है कि स्त्री को स्वयं इस बारे में | सौपने विचारने और निर्णय भेने का अधिकार मिले । स्टोन क्राफ्ट की आताज आज भी नारीवादियो' के लिए एक प्रेरणा स्रोत है, कि स्त्री न तो स्तय' गुलाम रहना चाहती है और न ही पुरुध को गुलाम बनाना चाहती है। स्त्री चाहती हैं -मानवीय आकार । 

जैविक विभिन्नता के आधार पर वह आकार से वंचित नहीं होना चाहती । इसलिए दुनिया की प्रत्येक स्त्रियां चाहे ने किसी वर्ग या पैशे की हो यह स्वीकार करे कि स्त्री को पुरुषों के बराबर आधिकार मिलना ही चाहिए।'

नारीवाद की अवधारणा

नारीताद 'स्त्री - पुरुष समानता को प्रतिपादित करने वाली विचारधारा है। इसकी मान्यता है कि स्त्री, पुरुष से किसी भी मायने में कमजोर नही है, अतः

उसे पुकसी के समान समझा जाय और पुरुषो के बराबर अधिकार भी मिलने चाहिए।
मेरी वोलस्टोन क्राफ्ट , में अपनी पुस्तक " विडिकेशन आफ द राइट आफ तुमैन (1978) में नारीवाद को नारी -अधिकारी की मांग के रूप में परिभाषित किया जो पुरुषो के समान अधिकारों की मांग करता है।

केट मिलेट (kete millet). ने अपनी पुस्तक 'सेक्सुअल पालिटिक्स' में लिखा है कि । नारी को पितांबीय व्यवस्था की जकड़न से अलग कर उसकी. स्वतंत्रता को कायम रखने को ही नारीवाद कहा जाता है। जीता कहा जाता 
जान स्टुअर्ट मिल ने अपने पुस्तक ' सब्जेक्शन आफ तुमन (1363) में नारीवाद की अवधारणा में स्त्री -पुरुष समानता पर पण दिया। 

उसने माना कि - किसी समाज में स्त्री -पुरुष समाप्तता और संबंध का मूल आधार प्रेम -सौहार्द और मित्रता है। स्वी पुरुष सहचर है । कोई किसी पर अपना समुत्व नही स्थापित कर सकता । दोनो का समाज पर बराबर का हक है अत: स्त्री पर पुरुष का वर्चस्त नही स्वीकार किया जा सकता।

पेटी फ्रीडन ने अपनी पुस्तक 'द फैमिनिन मिस्टीक 985) में नारीवाद की धारणा में नारी को पूरे समाज का आधा हिस्सा मानते हुए उसके अधिकार को वापस दिलाने पर बल दिया है।

सिमोन दी चुभा ने अपनी पुस्तक 'द रोकड सेक्स (1949) मै नारीवादी का मुख्य लक्ष्य पुरुषो का हर स्तर पर 'तिरोध] करना माना है। इनका भासिद नारा था कि " स्ती पैदा नहीं होती . वाल्ले बना दी जाती है। " स्त्री को समाज में पुरुषों ने अपने हवस का शिकार बनाया है, अत: उसे अपने आही कारों के लिए उठ खड़ा होना होगा तथा स्वयं लड़ना होगा।"

भाशारानी बोहरा ने अपनी पुस्तक 'भारतीय नारी: दशा और दिशा (1963) मैं लिखा है कि नारीवाद नारी का पुरुषों के प्रति संघर्ष नहीं वरन सौहार्दपूर्ण स्थिति में उसै हत दिलाने का एक विचारित तरीका है।

ममा बैतान ने सिमोन द बुआ के' द सेकण्ड सैक्म' का हिन्दी में "स्ती उपेक्षिता" नाम से अनुवाद किया है । उन्होने लिखा है कि - स्वी आधी दुनिया है, आधा हिन्दुस्तान है 'फिर भी समाज में उसे 'डायन' कुलक्षिनी' तथा राक्षसी आदि की संज्ञा दी जाती है। 

नारी एक प्रकार का दमन झेलती है और नारीवाद इसी दमन से स्त्री मुन्ति एव उसकी सामूहिक चेतना के विकास के लिए प्रयत्न शील हैं। इस प्रकार यदि नारीवाद के मूल तत्वो पर विचार करे तो इसमै निम्न बाते शामिल हैपुरुष वर्चस्व विहीन समाज की स्थापना, जेंडर - डिफरेंस की समाप्त पर बल. सामाजिक न्याय पर बल, नारी -अधिकार की मांग, आर्थिक स्ततेत्ता नारी स्वतंत्रता की आवश्यक, शर्त ।

प्राचीन काल से ही समाज में यह धारणा विद्यमान रही है कि पुरुष' का कार्य , घर के बाहर और स्त्रीका सरोकार घर के अंदर के कामी' से है । जैसे- . भोजन बनाना, बच्चों की देखभाल तथा बडो' को सेवा आदि । men outside the home and women inside the home.)

आधुनिक समाज एक पुरुषप्रधान समाज है. जो पुरुषों की श्रेष्ठता में विश्वास करता है। तथासदैव स्त्रियो' के संबंध में यह धारणा रही है कि सी हीन होती है, इसका एक प्रमुख कारण रही है - पितृसत्तात्मकता। इस व्यवस्था में परिवार के बंधन में पुरुषो का वर्चस्व रहता है। वही निर्णयकर्ता भी होता है। इसके कारण भी अपनी इस सत्ता का प्रयोग स्त्रियो पर किया।

नारीवाद के प्रकार । 

  1. उदारवादी नारीवाद (iibenal Pemainism) 
  2. उग्रवादी नारीवाद (Rodhital) 
  3. समाजवादी / मार्क्सवादी नारीवाद
  4. उत्तरआधुरिक्षारीवाद (Post modernist)
  5. सांस्कृतिक नारीवाद (Cultural)
  6. पर्यावरणीय नारीवाद (Eco- Fertruism)
उदारवादी नारीवाद (Liberal Paninism).
- इसमे मुख्य रूप से महिला को वैधानिक आकार (Legal rights) मदान करने पर बल दिया जाता है। अर्थात 'महिलाओं को भी पुरुषो के समान आधिकार मिलने चाहिए। wool Sto ne craft. - 'windication of the right of the women' (1992)

महिलाओ' का पुरुषों पर वर्चस्व नही बाल्क माहिलाओं को पुरुषों के समान आकार मिलना चाहिए। उन्हें शिक्षा के समान अवसर दिये जाय, जिससे परिवार का कल्याण तथा एक स्वस्थ परंपरा का प्रारम्भ होगा । महिलाओं को पुरुषी' की भलाई के लिए शिक्षित किया जाय क्योंकि . महिलाओ को शिक्षित करना परिवार के हित मैं होगा ।

Sanah Grimke (I+92-18+3) - महिलाओ' की अधीनता (Subordination) को दूर करने हेतु उनको पुरुषो के समान ही अधिकार मिलने चाहिए । Havuit Teuer (1807 - 1858). • ये जान स्टुअर्ट मिल की पत्नी थी, । इन्हीने पुरुष तथा स्त्री को एक दूसरे का पूरक माना तथा महिलाओं के लिए पुरुषों के समान आधिकार देने की बात की।
John stuast mill (1806-1873). The subordination of tutney
1969

इन्होंने महिलाओ' तथा पुरुषों को बराबरी का समर्थन किया । महिलाओं को पुरुषों के समान मताधिकार मिलना चाहिए तथा शादी में भी समानता होनी चाहिए । अर्थात स्त्रियों को शादी करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। नारी - पुरुष में समानता लाने का सबसे बड़ा तत्व यह है कि उनको मा देने का अधिकार (Right to vote) मिले।

इस प्रकार उदारवादी नारीवादी विशेषकर नारीको मताधिकार देने पर बल देते है। मताधिकार आदेखन 1840 के दशक में प्रभावी हुआ। इसका महत्वपूर्ण चरण उस समय मारम्भ होता है जब 1848 में महिलाओं के अधिकारो की रक्षा के लिए आन्दोलन प्रारम्भ किया गया। 

इसके लिए सैनेका फाल कन्तेंशन' का आयोजन किया गया तथा इसमें कई मुदी' पर विचार किया गया। इस घोषणा पत्र की लेखिका । एलिजावेथ स्कैण्टन' थी। इसमें इस बात पर जोर 'दिया गया कि महिलाएँ पुरुषो' के बराबर है । माहिलाएं पुरुषों से किसी भी मायने में कमजोर नहीं है 

तथा उनको पुरुषों के समान शिक्षा, स्वतंत्रता तथा मत देने का अधिकार मिलना चाहिए। 1850 के दशक मे मिल ने सर्वपञ्चा स्त्री के मताधिकारी की बात की तो दुनिया के अनेक देशोमैं जागरुकता आयी । -यूजीलैण्ड' वह प्रथम देश बना , जिसने 1893 में महिलाओ के मताधिकार की व्यवस्था की।

अमेरिका में महिलाओ को महाधिकार 1920 मै ते संशोधन द्वारा प्रदान किया गया । ब्रिटेन में 1918 में आंशिक रूप में तथा 1928 में पूर्ण रूप से महिलाओं के लिए मताधिकार की व्यवस्था की गयी। उदारतादी नारीवादी (liberal) निम्न माहिला आद्य कारी पर बल देते हैं

महिलाओं को मत देने का आकार 
2. शिक्षा का आधिकार
3. बौद्धिक रुप से समानता' में विश्वास कु'विचारक मानते है कि महिला तथा पुरुष' में रचना बनावट तथा शाठत में अंतर है परन्तु अधिकतर नारीवादी विचारक, यह मानते है कि महिला तथा पुरुष समान है उनमे कोई अंतरनहीं सभी उदारतादी विचारक इस संबंध में ट्याक्तवादी विचार रखते है कि नारी भी एक व्याक्त हैं और व्याक्ते होने के नाते उसे पुरुषो के समान आधिकार मिलने चाहिए।

इस सिद्धान्त की काफी आलोचना भी की गयी है। जो निम्नालिखित प्रकार से है यह सिहान्त एक व्याक्त वादी सिहान्त है,अत: पित्तसतात्मक सत्ता की आलोचना करने के बजाय यह प्याक्तवाद पर ज्यादा सल देता है। इसका मुख्य उद्देश्य गौण हो जाता है।

व्यातिताही पर आधिक बल देने से , सभी अधिकारी हेतु एक जुट नहीं हो पाते इससे सामहिक कार्यविधि (colletive indidativity) में बाधा आती है , जिसके कारण यह आन्दालन कमजोर हो जाता है। 

3- यह सिहान्त माहिला-पुरुष समानता में विश्वास करता है । इसके विरुद्ध आक्षेप लगाया जाता है कि यदि हम स्त्रीपुरुष को समान देखते है तो कहीं न कहीं हम महिलाओ को पुरुष बनाना चाहते है जो उचित नहीं है।

उग्रवादी नारीवाद ( Radical Pendinisty

नारीवाद की उदारवादी धारणा में परिवर्तन हुआ और 1960 के दशक में यह उग्रवादी
स्तरुप में बदल गया 

Betty Pridan- 'The Femenin mistakes! (1965) it hurt पुस्तक में महिलाओं की समस्याओ', को हमारे समक्ष रखा । उनकी पुस्तक को नारीवादियों की बाइबिल ' मानी जाती है। उनका मानना है कि मनौवैज्ञानिक रूप से महिलाओं को इतना हतोत्साहित कर दिया जाता है कि , - महिलाएं घर से बाहर अपने को असुरक्षित समझती हैं।
उनकी सोच इस तरह बना दी जाती है कि वे घर में संरक्षित है । उनका काम घर के काम करना है बाहर के काम तो पुरुषों का है।

1966 मै' फ़ीडन ने एक महिला संगठन ' National org' bor women' का निर्माण किया। इसी से प्रेरणा लेकर महत्व पूर्ण नारीवादिन केट मिलेट (Rate millete) ने अपनी पुस्तक लिखी जो (sexual Patitis) के नाम से प्रकाशित हुई। इसमे केट मिलेट ने बताया कि स्त्री -पुरुष संबंधो का मामला राजनीतिक है। 

राजनीतिक, Paulia) - जहा संघर्ष म हो वहा संघर्ष उत्पन्न किया जाय और जहा संघर्ष है वहा से इसे समाप्त किया जाय उनवादी नारीवादियों का प्रमुख विचार था कि - Personal and Parivate is Political.  इस क्रम में अनेक पुस्तके लिखी गयी जिनमे' मुख्य है

Sulamibh Airestone. 1970 - The Dialectic of Sex German Greeir - 'female Eunuch' Sheila Robatham - Hidden from history_(1975) Juliat Michell - women: The longest revolutionary (1974)
उग्रवादी नारीवादियों का मानना है कि पितृसत्तात्मक सत्ता के प्रभाव के कारण पुरुषो ने स्त्रियों को सभी क्षेत्रों में अपने अधीन बना लिया। इन सभी विचारको में विवाह को अधीनता का प्रमुख कारण मानकर पितर का ही विरोध किया ।

3. महिलाओ की स्वतंत्रता के लिए पितृसत्तात्मक प्रणाली को नष्ट करना होगा। पिवसत्तात्मक प्रणाली का आधार परिवार है अतः परिवार ही नष्ट करना होगा।

4. फायरस्टोन . का मानना है कि महिला तथा पुरुष में जैविक अंतर (Biological dis) है। यदि महिलाओ को बच्चे पैदा करने से मुक्त कर दिया जाय तो म' पर से पुरुषों का वर्चस्व समाप्त हो सकेगा। महिलाओं की जनन क्षमता ही उनके अधीनता का मूल कारण है। मार्गदर्शन फॉर सिविल सर्विसेज

5. उग्रवादी नारीतादियों ने woman (Biological term) के स्थान पर Gender ( cultural term) को प्रयोग करने पर बल दिया।

Pos+ Feminism. (उत्तर नारीवाद)

अग्रतादी नारीवादियों में ऐसे समाज की कल्पना की जिसमे पुरुषों का कोई हस्तक्षेप न हो। परन्तु इससे स्थिति और भी खराब होने लगी । इसके कारण परिवार में विखराव, तलाक नशाखोरी तथा इस आदि आपराधिक कार्यों में वृद्धि हुई। पुन: उन्ही लेखकों तथा विचारको नै, जिन्होने कि रैडिकल नारीवाद का समर्थन किया था तथा पस्तिर उन्होंने ही परिवार का समर्थन करना प्रारम्भ कर दिया । इनमें मलय रुप से रोटी फ्रायडेन, जर्मन ग्रियर आदि है।

Pes+ Modern Feminismy (उत्तरआधुनिक नारीवाद)
विचारों को प्रकार की श्रेणियों में रखा जा सकता है ।- प्राचीन Candent) 2- मध्यकालीन (modival) तथा आधुनिक (modern).  यदि हम प्राचीन परंपरा तथा रुदिगत मान्यताओं को प्राचीनता तथा परंपरागतता के साथ जोडले है तो आधुनिकता से तात्पर्य - विज्ञान व तकनीकी विकास, धर्मनिरपेक्षता तथा नगरीकरण आदि शामिल है । 

परन्तु आज एक नये प्रकार की धारा चल रही है जो परंपरा तथा आधुनिकता को एक साथ जोड़कर चलती है तो इसी को । उत्तर - आधुनिकता' की संज्ञा प्रदान की जाती है। Modern + Traditional = Pos+ modern
उत्तर आधुनिकता यह मानकर चलता है कि , कुछ भी सार्वभौमिक (universal) नहीं' है क्योंकि समय तथा

 परिस्थिरियों के अनुसार सभी धारणा परिवर्तनशील होती है। यह विखण्डनवाद में विश्वास करता है अर्थात एक शब्द का अर्थ भी भिन्न -भिन्न समय तथा परिस्थितियों में अलग -अलग
होता है। जहा अन्य नारीवादी सिद्वान्त सभी स्त्रियो को एक वर्ग के कप में देखते है वही उत्तर आधुनिक नारीवाद की मान्यता है कि दुनिया की सभी महिलाओ को एक वर्ग


के रुप में शामिल करना ठीक नही है क्योकि दुनिया के विभिन्न भागो के महिलाओ की समस्याएं एक समान नहीं होती है। जैसे - अमेरिकन महिलाओं और अफ्रीका की महिलाओं की समस्या भिन्न भिन्न है। अतः सनी महिलाओ को एक वर्ग के अंतर्गत रखकर उनके आधिकारी' की रक्षा नहीं की जा सकती है।

इस प्रकार इन समस्याओं को समझने हेतु हमें 'सांस्कृतिक सापैक्षवाद (cultural relatitism) के सहारे अलग अलग वर्ग की महिलाओं की विश्लेषण करके , उनके द करने का प्रयास करना पड़ेगा। जैसे एक अमेरिकन महिला की समस्या म्लब जाने की हो सकती है तथा एक अफ्रीकन महिला की समस्या शिक्षा पाने की हो सकती है।

Eco-Femainu'sm (पर्यावरणीय-नारीवाद).

इसमें अनेक नारीवादी लेखिकार व विचारक शामिल हैं; जैसे - वदना शिताच', सुनीता नारायण, मेधा पाटेकर आदि । इनका मानना है कि प्रकृति तथा महिलाओ मैं काफी समानता है। महिलाएं प्रकृति के सर्वाधिक निकट होती है अत: इन पर पर्यावरण का सर्वाधिक प्रभाव महिलाओ' परीपड़ता है। 

अत: प्राकृतिक । पर्यावरणीय उत्थान द्वारा नारी की स्थिति को बेहतर बनाया जा सकता है। प्रकृति की स्त्री माना गया, धरती को तथा नदियों की मां कादर्जा दिया गया है। झसे नारीता प्रकृति में समानता है।

Essay on feminism नारीवाद पर निबंध

वास्तव में नारीतादी . आन्दोलन पाश्चम की देन है। तो प्रश्न यह उठता है कि क्या नारीवाद के भारत में लागू किया जा सकता है या नहीं। भारत में नारीवाद को उस रूप में नहीं लागू किया जा सकता है जिस प्रकार से पाश्चम में | भारत में महिला बचपन मे पिता , युवावस्था में पति तथा वृद्वावस्था में पुल के अधीन रही है। 

यहा' पर प्राचीन काल से ही स्त्रियो को पुरुषों की तुलना में निम्न कोटि का माना गया है। स्त्री को दासी या सेविका तथा पुरुष को स्वामी का दर्जा प्रदान किया गया है । इसका प्रमाण प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है - मनुस्मृति, 'मीताक्षरा, आदि ग्रंथों से जानकारी मिलती है कि प्राचीन काल में स्त्रियों की स्थिति काफी खराब थी। 

न केवल हिन्दू समाज बल्कि 'माणिम समाज में महिलाओं को भी सम्मानजनक स्थान नही प्राप्त था। मुस्लिम समाज मे तो महिलामी की गवाही को भी स्वीकार नहीं किया जाता था।

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