Role of the young generation in nation building Essay राष्ट्र निर्माण में युवा पीढ़ी की भूमिका निबंध
Role of the young generation in nation building Essay राष्ट्र निर्माण में युवा पीढ़ी की भूमिका निबंध. देश के निर्माण में युवा पीढ़ी की भूमिका कविवर अवधेश्वर अरुण ने देश और युवा के सम्बन्धों का वर्णन करते हुए लिखा है देश है तन मन हमारा, देश के हम प्राण हैं। देश है मुरली मनोहर देश के हम गान हैं।
सचमुच देश शरीर है तो युवा वर्ग उसका प्राण है। यह युवा वर्ग ही है जो देश को बनाने अथवा बिगाड़ने की शक्ति रखता है। इसलिए देश के निर्माण में युवा पीढ़ी की भूमिका की बात आते ही हमारे सामने यह चित्र स्पष्ट हो जाता है कि देश का स्वरूप युवाओं से ही निर्मित होता है।
Role of the young generation in nation building Essay |
प्रश्न उठता है कि किसी देश के निर्माण की आवश्यकता क्यों और कब होती है ? इसका उत्तर है कि कोई देश जब गुलाम हो जाता है वह देश क्षत-विक्षत और ध्वस्त हो जाता है। दुर्भाग्य से हमारा देश दो सौ वर्षों तक गुलाम बना रहा। फलतः इसका आर्थिक, नैतिक, सामाजिक,
Role of the young generation in nation building Essay राष्ट्र निर्माण में युवा पीढ़ी की भूमिका निबंध
राजनीतिक हर तरह से घोषण हुआ। हमारे पूर्वजों ने लड़कर इसे आजाद किया तो देश के रूप में हमें एक खंडहर में हुआ। छिन्न-भिन्न अर्थव्यवस्था, पहचान विहीन राजनीतिक व्यक्तित्व, अशिक्षा से और गरीबा से भरा जन-जीवन, न भोजन का ठिकाना, न स्वास्थ्य रक्षा की सुविधा और न प्रगति करने हेतु कोई साधन। इसलिए देश का निर्माण हमारी अनिवार्य आवश्यकता थी।
यदि हम नया घर बनाते हैं तो वह भी कुछ वर्षों बाद पुराना होने लगता है। पुराना होते ही वह रख-रखाव की अपेक्षा करने लगता है। यदि उसको निरन्तर मरम्मत की सुविधा न मिले तो वह ढहने लगता है। कुरूप होने लगता है। अतः प्रश्न चाहे नव निर्माण का हो चाहे रख-रखाव का हर देश को कर्तव्यनिष्ठ लोगों की आवश्यकता होती है।
आजादी की लड़ाई लड़ते-लड़ते हमारे नेता स्वाधीनता मिलने तक बुजुर्ग हो गये। स्वाधीन भारत में उन्होंने देश के निर्माण की योजनाबद्ध प्रक्रिया प्रारंभ की। लेकिन वे धीरे-धीरे एक-एक कर चले गये और देश के निर्माण का दायित्व अगली पीढ़ी पर छोड़ गये जो निश्चय ही युवा पीढ़ी थी।
Role of the young generation in nation building Essay
आज वह पीढ़ी भी या तो बूढी हो गयी है या समाप्त हो गयी है और अगली पीढ़ी को यह दायित्व दे गयी है। इस तरह हर पीढ़ी जब पुरानी हो जाती है तो आगे वाली युवा पीढ़ी को दायित्व सौंपकर विदा हो जाती है। जैसे दिनकर जी ने अपनी कविता में पतझड़ को पुरानी पीढ़ी और वसन्त को नयी पीढ़ी का प्रतीक बनाते हुए लिखा है
मैं शिशिर शीर्णा चली, अब जाग तू मधामास वाली। युवावस्था में स्त्री-पुरुष के मन में उत्साह होता है, शरीर में शक्ति होती है और होती है कुछ कर गुजरने की साध, नाम कमाने की ललक। यह पीढ़ी अपनी असीम ऊर्जा से या तो ध्वंस मचा सकती है या निर्माण कर सकती है। अतः आवश्यकता इस बात की होती है कि युवा पीढ़ी की ऊर्जा को निर्माण के कार्य में लगाया जाय।
हमारे देश में समस्या ही समस्या है। अतः हर क्षेत्र में काम करने की अनन्त संभावना है। युवक अपनी ऊर्जा जिस क्षेत्र में लगायेंगे उसी क्षेत्र में वे बहुत कुछ कर सकते हैं। युवा शक्ति की इसी प्रबलता को देखते हुए हमारी केन्द्रीय सरकार ने अनेक युवकोपयोगी योजनाओं का कार्यान्वयन किया। उदाहरण के लिए नेहरू युवा केन्द्र का नाम लिया जा सकता है। यह संगठन
Role of the young generation in nation building Essay
देश के निर्माण में युवाओं की भूमिका सुनिश्चित करनेवाली अन्यतम संस्था है। इस संस्था की शाखा खोलकर हमारी युवा पीढ़ी जहाँ है, वहीं से देश सेवा या समाज सेवा का कार्य कर सकती है। अपना व्यक्तिगत कार्य करते हुए। जैसे एक भक्ति पूर्ण उक्ति को बदल कर हम कह सकते हैं
जब तलक है जिन्दगी कुरसत नहीं निज काम से कुछ समय प्यारे निकालो देश के ही काम से। निरक्षरता, परिवार नियोजन, जनसंख्या विस्फोट, आदि ऐसी समस्याएँ हैं जो देश के लिए चिन्ता का विषय है। यदि युवक “इच वन टीच वन" का नारा लेकर बढ़े तो सारे देश से निरक्षरता भगा सकता है,
परिवार नियोजन कार्यक्रम की जानकारी देकर जनसंख्या नियंत्रण और सुखी समाज का काम कर सकता है। अपनी कला प्रतिभा, क्रीडा क्षमता से देश का नाम रोशन कर सकता है। वैज्ञानिक प्रगति में भाग लेकर देश को आगे बढ़ा सकता है
Role of the young generation in nation building Essay
बूढ़े लोग सोचते ज्यादा हैं, करते कम हैं। इसके विपरीत युवा सोचता कम है, करता अधिक है। कुछ वर्ष पूर्व जयप्रकाश नारायण ने युवा शक्ति को संगठित कर एक नारा दिया-सम्पूर्ण क्रान्ति और युवाओं ने सत्ता पलट दी।
आज देश को नौजवानों की ऊर्जा की जरूरत है, काम करने के लिए,
ईमानदारी की जरूरत है भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए, कर्मठता की जरूरत है देश की प्रगति के लिए निरन्तर काम करने के लिए। जिस तरह दीपक लगातार तेल डालने और बत्ती उकसाने से प्रकाश देता है उसी तरह निरन्तर काम करते चलने से ही हमारे देश की प्रगति होगी, ऊर्जा बनी रहेगी और त्रुटियों का, खामियों का परिमार्जन होता
चलेगा। यह काम युवा पीढ़ी ही कर सकती है। क्योंकि काम करने की क्षमता उसी के पास है। समय का तकाजा है, देश की माँग है कि युवक अपनी ऊर्जा का ध्वंसात्मक और एकता नष्ट करने वाले कार्यों में उपयोग न करके देश को बनाने और आगे ले चलने में करें।
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