Skip to main content

संगम काल पर महत्वपूर्ण सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तर Sangam Literature in Hindi

संगम काल से जुड़े सामान्य ज्ञान के प्रश्न और उत्तर पढ़ें और अपनी तैयारी को मजबूत बनाएं। तमिल साहित्य और संस्कृति के इस स्वर्णिम युग के बारे में महत्वपूर्ण तथ्यों और जानकारियों को जानें। संगम काल के इतिहास, साहित्य, और सांस्कृतिक योगदान पर आधारित जीके और जीएस प्रश्नोत्तरी के माध्यम से खुद को परखें और प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए तैयार रहें।

Sangam-Literature-in-Hindi

संगम काल पर महत्वपूर्ण सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तर Sangam Literature in Hindi

100 ई. से 250 ई. के मध्य दक्षिण भारत में पांड्य राजाओं के संरक्षण के कवियों के 3 विशाल सम्मेलन बुलाए गए। इन सम्मेलन को ही तमिल भाषा में संगम कहते हैं।
• इन्हीं कवियों के द्वारा सभा में कई तमिल साहित्य की रचना की गई। इन्हीं तमिल साहित्य को संगम साहित्य भी कहा जाता है।

इतिहास में 3 संगमो का वर्णन मिलता है।

(1) प्रथम संगम-
● यह दक्षिणी मदुरा में हुआ।
इसकी अध्यक्षता अगस्त्य ऋषि ने की।
इस सम्मेलन में 89 राजाओं ने भाग लिया।
वर्तमान में दक्षिणी मदूरा जलमग्न हो गया है। जिस कारण इस संगम में लिखे गए साहित्य की कोई जानकारी नहीं है। 

(2) द्वितीय संगम-
यह कपाटपूरम (अलैव) में हुआ।
प्रारंभ में इसकी अध्यक्षता अगस्त्य ऋषि ने की किन्तु बाद में "तोलकापिय्यर ने की।
इसी सम्मेलन में "तोलकापिव्यर" ने "तोलकापिय्यम" नामक तमिल साहित्य की रचना की।
इस संगम में 59 राजाओं ने हिस्सा लिया।

( 3 ) तृतीय संगम -
इसकी अध्यक्षता "नक्कियर" ने किया।
इसमें 49 राजाओं ने हिस्सा लिया।
इस संगम में लिखे गए साहित्य का भी कोई स्पष्ट साक्ष्य नहीं मिला है।

नोट - (1) तीनों ही सम्मेलन तमिलनाडु में किए गए हैं। नोट - (2) अगस्त्य ऋषी (काशी) बनारस के रहने वाले थे जो तमिलनाडु में बस गए।

● अगस्त्य ऋषि को तमिल साहित्य का जनक माना जाता है। पांड्य राजाओं के द्वारा इन संगमों को साही संरक्षण प्रदान किया गया।

संगम काल के राज्य

कृष्णा नदी के दक्षिण में अर्थात् भारत के सुदूर दक्षिण में 3 राज्यों का उदय हुआ।
1. चेर, 2. पांड्य एवं 3. चोल
चेर वंश

संगम काल के वंशों में सबसे प्राचीन चेर था। जबकि चेर का अर्थ होता है- पर्वतीय देश
ऐतरेय ब्राह्मण ग्रंथ में इसे चेरापद कहा गया है।
अशोक के द्वितीय शिलालेख में इसे केरलपुत्र कहा गया है।
इनका क्षेत्र केरल (मालाबार) में था।

यह केरल का प्राचीन नाम था।
इनकी राजधानी बंजी/करूर थी।
इनका राज्य चिन्ह धनुष था ।

इस वंश का प्रमुख बंदरगाह मुजरिस (रोमन पार केन्द्र)  था। 
चेर वंश का प्रथम शासक उदियन जरेल था। 

अगला शासक शेनगुटवन था, इसे लाल चेर भी कहते हैं। इस वंश का सबसे प्रतापी शासक शेनगुटवन था।
गुटवन ने पत्नीपूजा (कणगी पूजा) प्रारंभ किया। इस पूजा में उसने श्रीलंका तथा पड़ोस के राजाओं को भी आमंत्रित किया।

इस वंश का अगला शासक आदीगमान था, जिसने गन्ने की खेती प्रारंभ की।
चेर वंश का अंतिम शासक कुडक्कईय्यल जरेल था। जिसे हाथी की आँख वाला कहा जाता था।
इसी शासके के समय पेरून जेरल पिरपोरई विद्वानों का संरक्षक
था।

दूसरी सदी के अंत में (190 ई.) चेर वंश समाप्त हो गया।

संगम काल पर महत्वपूर्ण सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तर Sangam Literature in Hindi

पांड्य वंश
इसका अर्थ होता है प्राचीन देश
इसकी राजभाषा तमिल थी।
यह मातृ सत्तात्मक था तथा मोतियों के लिए प्रसिद्ध था। 
पांड्य राजाओं ने ही तीनों संगम का अयोजन किया था। 
पांड्य वंश की प्रथम जानकारी मेगास्थनीज की पुस्तक 'इण्डिका' से मिलती है।
पांड्य वंश का क्षेत्र तमिलनाडु के दक्षिणी भाग में था। 
इनकी राजधानी मदुरै थी।
इनका राजकीय चिन्ह मछली (कार्य) था।
पांड्य वंश का प्रथम शासक नोडियोन था। 
इसने समुद्र पूजा प्रारंभ की।
इस वंश का सबसे प्रतापी शासक नेडुजेलियन था।

संगम काल पर महत्वपूर्ण सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तर Sangam Literature in Hindi

इसने 290 ई. में हुए 'तलैया लंगानम" के युद्ध में चेर, चोल तथा 5 अन्य राजाओं को एक साथ पराजित कर दिया।
इस वंश का अंतिम शासक नल्लि वकोडन (मरावर्मन राजसिम्हा तृतीय) था।
5वीं सदी आते-आते पाण्ड्य वंश अस्तित्व विहिन हो गया। पांड्य वंश के राजाओं का रोम के राजा से अच्छा संबंध था। इन्होंने अपने दूत रोम के राजा आगस्टसा के दरबार में भेजा था।
पांड्य वंश की राजधानी मदुरै को त्योहारों का शहर कहते हैं। यहाँ का मिनाक्षी मंदिर विश्व प्रसिद्ध हैं।
अशोक के शिलालेख, महाभारत एवं रामायण से इस वंश की जानकारी मिलती है।
मेगास्थनीज ने इस वंश को माबर नाम से वर्णन किया है।
श्रीमरा श्रीवल्लभा अपने शासन काल में कई सिचाई परियोजनाएँ शुरू करवायी थी तथा इसके निर्माण में ईंट और ग्रेनाइट का प्रयोग किया गया था।
मरावर्मन राजसिह्या तृतीय एक ऐसा पाण्डय शासक था जिसने कुडम्बलूर में तंजावूर के चोल राजा का विरोध किया था। 
शिल्पादिकारम् पुस्तक में नेदुन्जेलियन प्रथम का वर्णन मिलता है। यह पुस्तक तमिल साहित्य के प्रथम महाकाव्य के रूप में जाना जाता है।
चोल वंश
इसका अर्थ होता है- नया देश
• इसके बारे में प्रथम जानकारी पाणिनी की रचना अष्टाध्यायी से मिलती है।
चोल साम्राज्य तमिलनाडु के पूर्वी भाग में था।
• इसकी प्रथम राजधानी 'उरई ऊर' थी।
● इसकी मुख्य राजधानी तंजौर (तमिलनाडु) में स्थित था। इस वंश की दूसरी राजधानी कांचीपूरम् (तमिलनाडु) में बनाई गयी थी।
● इनका राजकीय चिन्ह बाघ था।
उरई ऊर सूती वस्त्र के लिए विश्व में प्रसिद्ध था ।
ऐसा कहा जाता है कि इस समय के सूती वस्त्र साँप की केंचुली (पोआ) से भी पतले होते थे।
चोल साम्राज्य कावेरी नदी के उपजाऊ मैदान में था कि जितने क्षेत्र पर एक हाथी सोता था, उतने ही क्षेत्र पर उतना अनाज उगाया जा सकता है कि 1 वर्ष तक 7 लोगों का पेट भरा जा सकता है।
• चोल वंश का पहला शासक "उरवहप्पहरे" था।
इस वंश का सबसे प्रतापी शासक करिकाल था। इसने श्रीलंका जीत लिया और वहाँ से 12,000 द्वार लाया और कावेरी नदी पर 160m लंबा बाँध बनवाया।
● यह भारत का पहला बाँध था।
इसे Grand बाँध कहते है।
करिकाल ने पुहार नामक बंदरगाह बनवाया जिसे "कावेरी पटनम्" कहते हैं।

संगम काल पर महत्वपूर्ण सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तर Sangam Literature in Hindi

एलोरा तथा पेरूनरकिल्ली अन्य शासक थे।
चोल वंश 5वीं सदी आत-आते अत्यंत कमजोर हो गया और सामंती जीवन जीने लगा।
8वीं सदी में पुनः चोलों का उदय हुआ।

★ संगम कालीन आर्थिक जीवन-
• संगम काल सूती वस्त्र, मसाला, मोती, कृषि तथा पशुपालन के लिए प्रसिद्ध था।
• इस समय के सूती वस्त्र पूरे विश्व में सबसे अधिक प्रसिद्ध था । ★ संगम कालीन व्यापार-
संगम काल में रोम से सर्वाधिक व्यापार होते थे।
तमिलनाडु के अरिकामेडू (पांडिचेरी) से रोम का सर्वाधिक व्यापार होता है।

★ संगम कालीन जाति व्यवस्था-
• संगम काल में उत्तर भारत के विपरीत जाति व्यवस्था थी। ● यहाँ सामंत तथा दास में समाज बटा हुआ था।
• यहाँ वर्ण व्यवस्था या ऊँच-नीच की जाति व्यवस्था नहीं थी। ★ संगम कालीन धार्मिक जीवन-
• संगम काल में सबसे प्रमुख देवता मुरुगन थे, जिन्हें वर्तमान में सुब्रमण्यम कहा जाता है।
दूसरे प्रमुख देवता कार्तिकी (गणेश जी भाई) थे।
★ संगम कालीन बंदरगाह-
• संगमकाल के तीनों ही वंश के
(i) चेर-बंदरगाह (बंदर-
अपने-अपने बंदरगाह थे।
(ii) चोल बंदरगाह (पुहार तथा उरई)
(iii) पांड-बंदरगाह- (शालीयूर एवं कोरकाय )

Sangam Literature in Hindi

★ संगम कालीन साहित्य-
संगम साहित्य तमिल भाषा में लिखे गए।
इन्हें तमिलकम या द्रविड़ साहित्य भी कहते हैं, जो निम्नलिखित हैं। (i) तोलकाप्पियर इसका संबंध व्याकरण से है। 

(ii) तिरुक्कुरल या कूराल इसे तमिल साहित्य का बाईबल (एजिल) कहते हैं।
(iii) जीवक चिन्तामणि- इसका संबंध जैन धर्म से है। इसकी रचना तिरुतुक्क देवर है।
(iv) शिल्पादिकारम इसका संबंध जैन धर्म से है। इसमें नुपूर (पायल) की कहानी है। इसे तमिल काव्य का इलियट भी कहा जाता है।

राजा कोवलन अपनी पत्नी कन्नगी को छोड़कर माध्वी नामक नर्तकी के प्रेम में फंस जाता है और अपने धन को लुटाने के बाद उसे पश्चाताप होता है और अपनी पत्नी के पास लौटता है। उसकी पत्नी कन्नगी ने उसे अपना एक पायल दिया, जिसे बेचकर वे मदुरै में व्यापार प्रारंभ किया, किन्तु कोवलन पर मदुरै की रानी की पायल चुराने का आरोप लगा दिया गया और उसे फांसी दे दी गई।

* कोवलन की पत्नी कन्नगी ने श्राप दे दिया, जिससे मदुरै शहर नष्ट हो गया।
(v) मणिमेखले इसका संबंध भी बौद्ध धर्म से है। इसमें

कोवलन तथा माध्वी से उत्पन्न संतान मणिमेखलम् की चर्चा है, जिसने अंततः बौद्ध धर्म अपना लिया था। इसकी रचना शीतलैशत्नार द्वारा किया गया था। इसे तमिल काव्य Ka Odisaभी कहा जाता है।'


Comments

Popular posts from this blog

Sagun Kavya Dhara Kya Hai | Virtuous poetry | सगुण काव्य-धारा

Sagun Kavya Dhara Kya Hai | Virtuous poetry | सगुण काव्य-धारा.  Saguna means virtue, here virtue means form. We have already known that devotion, believing in the form, shape, incarnation of God, is called Saguna Bhakti . It is clear that in the Sagun Kavadhara, the pastimes of God in the form of God have been sung. It says - Bhakti Dravid Uppji, Laya Ramanand. Sagun Kavya Dhara Kya Hai | Virtuous poetry | सगुण काव्य-धारा Ans. सगुण का अर्थ है गुण सहित, यहाँ पर गुण का अर्थ है- रूप। यह हम जान ही चुके हैं कि ईश्वर के रूप, आकार,अवतार में विश्वास करने वाली भक्ति सगुण भक्ति कहलाती है। स्पष्ट है कि सगुण काव्यधारा में ईश्वर के साकार स्वरूप की लीलाओं का गायन हुआ है। कहते हैं - भक्ति द्राविड़ ऊपजी, लाये रामानंद।'  अर्थात् सगुण भक्तिधारा या वैष्णव (विष्णु के अवतारों के प्रति) भक्ति दक्षिण भारत में प्रवाहित हुई। उत्तर भारत में इसे रामानंद लेकर आए। राम को विष्णु का अवतार मानकर उनकी उपासना का प्रारंभ किया। इसी प्रकार वल्लभाचार्य ने कृष्ण को विष्णु का अवतार मानकर उनकी उपासना का प्रारंभ किया। इ

विद्यापति का संक्षिप्त जीवन-वृत्त प्रस्तुत करते हुए उनके काव्यगत वैशिष्ट्य पर प्रकाश डालें। अथवा, विद्यापति का कवि-परिचय प्रस्तुत करें।

विद्यापति का संक्षिप्त जीवन-वृत्त प्रस्तुत करते हुए उनके काव्यगत वैशिष्ट्य पर प्रकाश डालें। अथवा, विद्यापति का कवि-परिचय प्रस्तुत करें। उपर्युक्त पद में कवि विद्यापति द्वारा वसंत को एक राजा के रूप में उसकी पूरी साज-सज्जा के साथ प्रस्तुत किया गया है अर्थात् वासंतिक परिवंश पूरी तरह से चित्रित हुआ है। अपने आराध्य माधव की तुलना करने के लिए कवि उपमानस्वरूप दुर्लभ श्रीखंड यानी चंदन, चन्द्रमा, माणिक और स्वर्णकदली को समानता में उपस्थित करता है किन्तु सारे ही उपमान उसे दोषयुक्त प्रतीत होते हैं, यथा-'चंदन' सुगंधि से युक्त होकर भी काष्ठ है 'चन्द्रमा' जगत को प्रकाशित करता हुआ भी एक पक्ष तक सीमित रहता है, माणिक' कीमती पत्थर होकर भी अन्ततः पत्थर है तथा स्वर्ण-कदली लज्जावश हीनभाव के वशीभूत होकर यथास्थान गड़ी रहती है ऐसे में कवि को दोषयुक्त उपमानों से अपने आराध्य की तुलना करना कहीं से भी उचित नहीं लगता है अत: माधव जैसे सज्जन से ही नेह जोड़ना कवि को उचित जान पड़ता है। इस दृष्टि से अग्रांकित पंक्तियाँ देखी जा सकती हैं विद्यापति का संक्षिप्त जीवन-वृत्त प्रस्तुत करते हुए उनके

सूरदास की भक्ति-भावना के स्वरूप की विवेचना कीजिए। अथवा, सूरदास की भक्ति-भावना की विशेषताओं पर प्रकाश डालिये।

सूरदास की भक्ति-भावना के स्वरूप की विवेचना कीजिए। अथवा, सूरदास की भक्ति-भावना की विशेषताओं पर प्रकाश डालिये।  उत्तर-'भक्ति शब्द की निर्मिति में 'भज् सेवायाम' धातु में 'क्तिन' प्रत्यय का योग मान्य है जिससे भगवान का सेवा-प्रकार का अर्थ-ग्रहण किया जाता है जिसके लिए आचार्य रामचंद्र शुक्ल श्रद्धा और प्रेम का योग अनिवार्य मानते हैं। ऐसा माना जाता है कि भक्ति को प्राप्त होकर समस्त लौकिक बन्धनों एवं भौतिक जीवन से ऊपर उठ जाता है जहाँ उसे अलौकिक आनन्द की अनुभूति होती है। भक्ति के लक्षण की ओर संकेत करते हुए भागवतंकार कहते हैं "स वै पुंसां परोधर्मो यतोभक्ति रमोक्षजे। अहेतुक्य प्रतिहताययाऽऽत्मा संप्तसीदति।।" उपर्युक्त श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण के प्रति व्यक्ति में उस भक्ति के उत्पन्न होने की अपेक्षा की गई है जिसकी निरन्तरता व्यक्ति को कामनाओं से ऊपर पहुँचाकर कृतकृत्य करती है। _ हिन्दी साहित्येतिहास में भक्तिकालीन कवि सूरदास कृष्णभक्त कवियों में सर्वाधिक लोकप्रिय और सर्वोच्च पद पर आसनस्थ अपनी युग-निरपेक्ष चिरन्तन काव्य-सर्जना की दृष्टि से अद्वितीय कवि हैं जिनके द्वारा प