Anukhan Madhav-Madhav Smriti Shirshak Pad Ka Bhavarth || अनुखन माधव-माधव सुमरिते शीर्षक पद का भावार्थ प्रस्तुत करें।
Anukhan Madhav-Madhav Smriti Shirshak Pad Ka Bhavarth || अनुखन माधव-माधव सुमरिते शीर्षक पद का भावार्थ प्रस्तुत करें। उत्तर-'अनुखन माधव-माधव सुमरिते' शीर्षक पद महाकवि विद्यापति द्वारा रचित उनकी एक भक्तिपरक रचना है। यहाँ एक भक्तकवि के रूप में विद्यापति की भक्ति-भावना माधव के प्रति अभिव्यक्त हुई है। ध्यातव्य है कि एक भक्तकवि के रूप में विद्यापति शाक्त एवं शैव होने के साथ-साथ एक वैष्णव भी थे।
Anukhan Madhav-Madhav Smriti Shirshak Pad Ka Bhavarth || अनुखन माधव-माधव सुमरिते शीर्षक पद का भावार्थ प्रस्तुत करें।
यहाँ उनकी वैष्णवता माधव के प्रति अभिव्यक्त उनकी भक्ति-भावना से स्पष्ट है। कहना नहीं होगा कि विद्यापति की भक्ति अत्यंत ही सहज भाव से शिव, दुर्गा, विष्णु आदि सभी देवी-देवताओं के प्रति अर्पित होती चली है, सर्वत्र एकतानता का भाव विद्यमान है चाहे उनका कोई पद शृंगारपरक क्यों न हो।
प्रस्तुत पद में महाकवि विद्यापति द्वारा हरि अथवा विष्णु के प्रति एकात्मता की प्रबल आकांक्षा प्रकट की गयी प्रतीत होती है। 'माधव-माधव' की रट लगाती हुई सुन्दरी राधा माधवमय हो गयी है और अपने स्वभाव को बिसुरकर वह माधव के ही गुणों की गिरफ्त में आ गयी है। वह कहती है-हे माधव! तुम्हारा प्रेम अपूर्व है जिसने अपने विरह से अपने ही तन को जर्जर कर दिया है जिस कारण से अब जीवन जीने में सन्देह हो रहा है।
- Maan Na......... Maan
माधव को तलाशती हुई आँखें विरहाश्रुओं से भरी हैं। राधा की रटन में माधव की वाणी भी अधूरी निकल रही है। राधा के संग पुनः माधव और माधव के संग राधा-ऐसा प्रेम विरह के बावजूद नहीं टूट सकता चाहे विरह जितना भी दारुण हो। ऐसा प्रेम माधव और राधा का है-ऐसा महाकवि विद्यापति कहते हैं।
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