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Dearness Essay महंगाई पर निबंध

Dearness Essay महंगाई पर निबंध महँगाई (मूल्य वृद्धि) अर्थशास्त्र की दुनिया का मूल्य-सम्बन्धी सीधा सा सूत्र है कि जब किसी उपभोक्ता वस्तु की मात्रा कम होगी या घटेगी तथा उसको लेनेवाले अधिक होंगे तो उसकी कीमत बढ़ेगी। यही मूल्य वस्तु की अधिकता होने पर घट जाता है या अपने सामान्य स्तर पर पहुँच जाता है।

Dearness-Essay
Dearness Essay महंगाई पर निबंध

लेकिन प्रायः देखा जाता है कि असामान्य स्थिति में हुई मूल्य वृद्धि सामान्य दशा में घटती नहीं है और सदा बढ़ते जाने की यह स्थिति एक स्थायी प्रवृत्ति बन जाती है। मूल्य वृद्धि की यह स्थायी प्रवृत्ति. महँगाई है।

Dearness Essay महंगाई पर निबंध

अपने देश में महँगाई के एतिहासिक स्वरूप पर विचार करते हैं तो पाते हैं कि द्वितीय महायुद्ध के समय यह प्रवृत्ति वस्तुओं के अभाव के कारण उग्र रूप में प्रकट हुई थीं। लोगों को कपड़े तक कोटे से प्राप्त होते थे और तेल के अभाव में अंधेरे में भोजन करना पड़ता था। कुछ वस्तुओं की कीमतें तो आसमान छूने लगी थी। लेकिन युद्ध के बाद और देश की आजादी के उपरान्त यह स्थिति समाप्त हो गयी। आजादी के बाद 1962 में भारत-चीन युद्ध के

समय फिर हमारी अर्थ व्यवस्था पर तनाव आया और मूल्य वृद्धि प्रारंभ हुई। 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध और फिर 1971 और 1999 के भारत पाकिस्तान युद्ध के बाद जो अर्थ व्यवस्था पर अतिरिक्त बोझ पड़ा उसने हमारी अर्थ व्यवस्था को प्रभावित किया और मूल्य वृद्धि एक प्रवृत्ति के रूप में विकसित होने लगी।
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पिछले दो तीन दशकों में नेताओं की कृपा से इस देश में भ्रष्टाचार को पनपने का खुला अवसर प्राप्त हुआ है। चुनावों के लिए प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से चन्दा लेना, विभिन्न रैलियों और आयोजनों के लिए चन्दा लेना एक आम प्रवृत्ति बन गयी। ये चन्दे अधिकतर व्यापारियों से वसूले जाते रहे। कहीं-कहीं व्यापारियों द्वारा अपने लाभ के लिए भी नेताओं पर पैसा व्यय किया जाने लगा। इन सभी अतिरिक्त व्ययों की भरपाई करने के लिए व्यापारी वर्ग ने कीमतों में वृद्धि करनी प्रारंभ कर दी।

Dearness Essay महंगाई पर निबंध

इसी तरह पिछले दो दशकों में अपराधी तत्वों की राजनीति में भागीदारी बढ़ती गयी है। ये अपराधी तत्व राजनीति की खाल पहनकर शेर बन गये हैं। इधर एक दशक से धीरे-धीरे अपहरण का धन्धा भी पनपने लगा है जो पिछले वर्षों में कामधेनु उद्योग बन गया है। अधिकतर अपहरण व्यापारियों या उनके पुत्रों का हो रहा है। उनसे मोटी रकम ली जा रही है। न देनेवालों की हत्याएँ हो रही है। जो व्यापारी इन्हें पैसा देते हैं वे येनकेन प्रकारेण इस कमी को पूरा करने के क्रम में मूल्य बढ़ाते हैं।

पिछले दशकों में घूसखोरी एक सर्वस्वीकृत प्रवृत्ति बन गयी है। चपरासी से अधिकारी तक निन्यानवे प्रतिशत लोग या तो घूसखोर हैं या कमीशनखोर। काम करने के लिए पुजापा चढ़ाना एक अघोषित नियम बना हुआ है। इस चारित्रिक पतन का एक पक्ष तो पैसा कमाना है और दूसरा पक्ष उस पैसे में विलासिता की सामग्रियों को खरीदना है।

इसका परिणाम यह हुआ कि विलासिता की आवश्यकताओं से जुड़ी सामग्रियों पर पैसा व्यय करने या उनको सामाजिक हैसियत का प्रतीक मानने की प्रवृत्ति बढ़ी है। इस कारण उपभोक्ता सामानों की कीमत पर असर पड़ा है और उससे मुनाफा कमाने की प्रवृत्ति के क्रम में मूल्य वृद्धि हो रही है।

ट्रेड यूनियनों की मजबूत पकड़ के कारण उत्पादक कारखानों में ही नहीं सरकारी तन्त्र की नौकरियों में भी अधिक से अधिक सुविधा प्राप्त करने की प्रवृत्ति लगातार बढ़ी है। काम हो या नहीं, उत्पादन हो या नहीं सुविधाएँ लगातार बढ़नी चाहिए। महँगाई भत्ता बढ़ना चाहिए। इसके लिए हड़ताल, तोड़-फोड़ आम बात हो गयी है। 

Dearness Essay महंगाई पर निबंध

हड़ताल से कार्यदिवसों की क्षति होती है तो तोड़-फोड़ से आर्थिक क्षति। उद्योगपति इस क्षति की पूर्ति के लिए कीमतों में वृद्धि कर देते हैं और इसका सीधा असर उपभोक्ताओं पर पड़ता है।

तात्पर्य यह कि अर्थशास्त्र का सीधा-सा सूत्र अब समाजशास्त्र की जटिलता में उलझ गया है। अनेक कारणों ने मिलकर महँगाई को बढ़ाने में योगदान किया है। इन कारणों का सीधा असर भोजन, वस्त्र जैसी आवश्यक वस्तुओं पर पड़ा है और लगातार मूल्य बढ़ने से जन समुदाय त्राहि-त्राहि कर रहा है। इस माह सामान की जो कीमत है वही अगले माह रहेगी इसकी कोई गारंटी नहीं है। 

सामान का अभाव नहीं होता है लेकिन मूल्य अवश्य बढ़ जाता है। सरकार द्वारा या जन आन्दोलनों द्वारा इसे घटाने या इस पर अंकुश लगाने के सारे प्रयत्न बौने पड़ते जा रहे हैं। यदि महँगाई को हनुमान से उपमित करें और सरकार या जन आन्दोलनों के प्रयन्नों को सुरसा मानें तो महँगाई पर रामचरितमानस की ये पंक्तियाँ चरितार्थ होती हैं : जस-जस सुरसा बदन बढ़ाबा । तासु दुगुन कपि रूप देखाबा ।।

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