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Showing posts from May, 2022

Jaki Rahi Bhavna Jaisi. Prabhu Murat dekhi tin taisi. जाकी रही भावना जैसी। प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।

Jaki Rahi Bhavna Jaisi. Prabhu Murat dekhi tin taisi. जाकी रही भावना जैसी। प्रभु मूरत देखी तिन तैसी। यह लोकोक्ति गोस्वामी तुलसीदास रचित ग्रंथ रामचरित मानस की पंक्ति है। इसमें बताया गया है कि जिसकी जैसी भवाना थी उसने उसी रूप में भगवान श्रीराम को देखा।  Jaki Rahi Bhavna Jaisi. Prabhu Murat dekhi tin taisi. जाकी रही भावना जैसी। प्रभु मूरत देखी तिन तैसी। माता-पिता जैसी भावना रखनेवालों ने उन्हें बालक रूप में देखा, प्रेमिका की मनोदशा वाली युवतियों ने उन्हें पति या प्रेमी रूप में देखा, दुष्टों ने उन्हें शत्रु रूप में देखा आदि आदि। इस उक्ति का अभिप्राय मनुष्य के मनोविज्ञान के एक शाश्वत तत्व की ओर संकेत करना है। मनुष्य जैसा होता है, दूसरे को भी उसी रूप में देखता है। जो व्यक्ति चोर होता है वह दूसरों को चोर समझता है। जो भ्रष्ट होता हैं। वह दूसरों को भ्रष्ट समझता है।  इसी तरह जो सज्जन होते हैं, वे दूसरों को भला समझते हैं, भले ही वह व्यक्ति बुरा हो। इस तरह इस उक्ति से यह बात स्पष्ट होती है कि अपने दिल से जानिए पराये दिल का हाल।

Kshama shobhti us bhujang ko jiske paas garal ho. क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो

Kshama shobhti us bhujang ko jiske paas garal ho. क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो. यह पंक्ति राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर रचित कुरुक्षेत्र की है। जो अपनी सहजता और विशिष्टता के कारण सूक्ति बन गयी है। इसका साधारण अर्थ है कि यदि विषधर साँप किसी को न काटे तो बड़ी बात है।  Kshama shobhti us bhujang ko jiske paas garal ho. क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो क्योंकि उसके काटने से किसी की प्राण हानि हो सकती है। लेकिन जिस साँप के पास विष ही नहीं हो उसके काटने न काटने से कोई अन्तर नहीं पड़ता। अब यदि भुजंग अर्थात् साँप को मनुष्य समझकर विषधर सर्प को समर्थ या शक्तिशाली मनुष्य के रूप में अनुभव करें तो अभिप्राय होगा कि जो व्यक्ति किसी को दण्ड देने या हानि पहुँचाने की ताकत रखता है वह यदि किसी को क्षमा कर दे तो इसे उसकी कृपा माननी चाहिए।  इसके विपरीत जो किसी से बदला लेने या हानि पहुँचाने या दण्ड देने में समर्थ नहीं है अर्थात् कमजोर व्यक्ति है, वह यदि किसी के दण्डनीय अपराध को माफ ही कर दे तो उससे क्या ? उसकी क्षमा का कोई मूल्य या महत्व नहीं होता। यह पंक्तियाँ रामधारी सिंह 'दिनकर'

Man ke hare har hai, man ke jeete jeet. मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।

Man ke hare har hai, man ke jeete jeet. मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।  मनुष्य के जीवन में हार-जीत, यश-अपयश आदि सभी होते हैं, सुख के साथ दु:ख भी होता है। पर यदि मनुष्य का मन दु:खी और असफलता से निराश हो जाता है, तो वह कभी उन्नति Man ke hare har hai, man ke jeete jeet. मन के हारे हार है, मन के जीते जीत। नहीं कर सकता, क्योंकि किसी भी कार्य की सफल्ता में मन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मन यदि सशक्त है तो मनुष्य प्रतिकूल परिस्थितियों में भी महान कार्य कर सकता है। परन्तु, यदि मन ही हार गया तो जीवन में कोई भी कार्य पूर्ण नहीं हो सकता। कभी-कभी निर्धन एवं साधनहीन मनुष्य भी सफल होते हुए देखे जाते हैं और अत्यंत धनी व साधन-सम्पन्न व्यक्ति असफल भी होते हैं, परन्तु सफलता-असफलता का प्रमुख कारण मन की स्थिति है।

Elon Musk Tesla owner Quotes, About Elon musk, Elon musk business

Elon Musk Tesla owner Quotes, About Elon Musk, Elon Musk's business. Quotes of Elon Musk, the world's most revolutionary businessman. Sumar is among the rich people who proved their stubbornness. Who never bowed before the blessings. The owners of many companies like Tesla, and SpaceX, have come to know about their quotes and about them. Elon Musk Tesla Owner Quotes, About Elon Musk, Elon Musk's business If you’re trying to create a company, it’s like baking a cake. You have to have all the ingredients in the right proportion. -- Elon Musk I think it’s very important to have a feedback loop, where you’re constantly thinking about what you’ve done and how you could be doing it better. -- Elon Musk Life is too short for long-term  grudges.” ― Elon Musk “The odds of me coming into the rocket business, not knowing anything about rockets,  not having ever built anything, I mean, I would have to be insane if  I thought the odds were in my favor.” ― Elon Musk “Some people don’t l

Parahit saris dharam nahi bhai Muhavare ka Arth. परहित सरिस धर्म नहिं भाई' मुहावरे का अर्थ |

Parahit saris dharam nahi bhai Muhavare ka Arth. परहित सरिस धर्म नहिं भाई' मुहावरे का अर्थ | उक्त कथन गोस्वामी तुलसीदास कृत 'रामचरित मानस' से संकलित है। Parahit-saris-dharam-nahi-bhai 'धर्म शब्द जितना व्यापक है, उतना ही उसका प्रयोग मनमाने ढंग से किया जाता है, अथवा यह कहिए कि उसके अर्थ मनमाने ढंग से किए जाते हैं। राजनीति प्रधान आधुनिक युग में तो वह प्रायः अवज्ञा का विषय ही बन गया है तथा धर्म के नाम पर नाक-भौं सिकोड़ना उक फैशन की चीज समझी जाती है। Parahit saris dharam nahi bhai Muhavare ka Arth. परहित सरिस धर्म नहिं भाई' मुहावरे का अर्थ | धर्म के बारे में दो बातें स्पष्ट रूप से समझ ली जानी चाहिए, वह अंग्रेजी शब्द Religion का पर्यायवाची नहीं है। अतः धर्म, मजहब, मिल्लत या पंथ सम्प्रदाय आदि से सर्वथा भिन्न अर्थ का द्योतक है। दूसरी बात यह है कि धर्म के लक्षणों में परमात्मा की चर्चा कहीं नहीं की गई है।  धर्म एक ऐसा वेद विहित कार्य है, जिससे अभ्युदय और नि:श्रेयस की सिद्धि होती है, जिससे लौकिक समृद्धि और पारलौकिक कल्याण की प्राप्ति होती है। धर्म का महत्त्व व्यक्ति और समष्टि

kanth hriday ki kasauti hai, tapasya agni hai. कंठ हृदय की कसौटी है, तपस्या अग्नि है।

kanth hriday ki kasauti hai, tapasya agni hai. कंठ हृदय की कसौटी है, तपस्या अग्नि है। इस उक्ति में दो बातें कही गयी हैं कि प्रथम यह निकंठ हृदय की कसौटी है। यहाँ कंठ से तात्पर्य वाणी से है। व्यक्ति लाख चतुर हो, गंभीर हो या कली हो, उसके हृदय की सच्चाई उसकी वाणी से व्यक्त हो जाती है। अर्थात् मन की बात भाषा के द्वारा व्यक्त हो जाती है। kanth-hriday-ki-kasauti-hai,tapasya-agni-hai kanth hriday ki kasauti hai, tapasya agni hai. कंठ हृदय की कसौटी है, तपस्या अग्नि है। दूसरे भाग में कहा गया है कि तपस्या अग्नि है। तपस्या से तात्पर्य किसी लक्ष्य के लिए की जाने वाली सतत साधना है। इस सतत साधना के द्वारा मनुष्य के मन में विकार तथा इतर इच्छाएँ जल जाती है, मर जाती हैं और व्यक्ति लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है।  यदि वह व्यक्ति अपने अवगुणों या विकारों से मुक्ति का प्रयास करता है तो तप से यह भी प्राप्त हो जाता है। इस तरह कहा जा सकता है कि तपस्या से विकार नष्ट होते हैं और लक्ष्य प्राप्त होता है। तपस्या सोना को शुद्ध करने की प्रक्रिया है। अतः तपस्या अग्नि है।" "

Khet khaye gadha mar khaye jolha खेत खाये गदहा मार खाये जोलहा।

Khet khaye gadha mar khaye jolha खेत खाये गदहा मार खाये जोलहा।  इस उक्ति का अभिप्राय है अपराध किसी का और दण्ड किसी को। ऐसा लगता है कि किसी व्यक्ति का गदहा किसी का खेत चर गया होगा। Khet-khaye-gadha-mar-khaye-jolha Khet khaye gadha mar khaye jolha खेत खाये गदहा मार खाये जोलहा। उस व्यक्ति को इस नुकसान से क्रोध आया होगा और उस क्रोध के आवेश में उसने सामने पड़ जाने वाले किसी निर्दोष जुलाहे को पीट दिया होगा। यह भी संभव है कि वह गदहा उसी जुलाहे का हो और गदहे के अपराध का दंड उसके मालिक को मिला हो। आधार जो हो लेकिन मूल तथ्य यही है कि सामान्यतः  किसी व्यक्ति द्वारा किये गये अपराध का दंड उसी को मिलता है लेकिन कभी-कभी दोषी के बदले किसी निरपराध को दण्ड मिल जाता है। यह लोकोक्ति इसी तथ्य को व्यंजित करती है। देहात में इसी तरह की एक और उक्ति प्रचलित है 'खाथ भीम आ हग्गथ शकुनि।" 

हारे को हरिनाम मुहावरे का अर्थ | Hare ko harinam Muhavare ka Arth

हारे को हरिनाम मुहावरे का अर्थ | Hare ko harinam Muhavare ka Arth.  मनुष्य स्वभाव से पुरुषार्थी होता है। अपनी शारीरिक क्षमता और बुद्धि के सहारे वह संघर्ष कर जीवन समर जीतना चाहता है। इस समर में वह कभी जीतता है तो कभी हारता है। hare-ko-harinam-muhavare-ka-arth हारे को हरिनाम मुहावरे का अर्थ | Hare ko harinam Muhavare ka Arth लेकिन जबतक उसकी बुद्धि सही रहती है और शरीर में ताकत रहती है तबतक वह हार नहीं मानता है लेकिन जब बार-बार हारता है तो एक समय आता है कि वह शिथिल हो जाता है। उस समय उसे किसी अतिरिक्त शक्ति स्रोत से प्रेरणा या शक्ति ग्रहण करने की आवश्यकता होती है।  जैसे हमारे पास पूँजी नहीं होती है तो हाथ पर हाथ धरकर बैठने के बदले कहीं से कर्ज लेते हैं और उस कर्ज से धन कमाकर कर्ज भी लौटा देते हैं और पूँजी भी खड़ी कर लेते हैं। मनुष्य के लिए ईश्वर का नाम स्मरण करना ऐसा ही शक्ति-स्रोत है, पूँजी कोष है।  हारे को हरिनाम मुहावरे का अर्थ | Hare ko harinam Muhavare ka Arth वह हारने पर ईश्वर से प्रार्थना करता है। उनसे दया की भीख मांगता है, जीतने के लिए शक्ति का वरदान चाहता है। इससे भिन्न यदि वह पूर

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